Saturday, 26 September 2020

त्रिवेणी




सोच लो कुछ अनजान बातें समझना या
समझा पाना मुश्किल हो जाता है
01.
ख़ुद का नब्ज़ टटोला ख़ुदा मिला,
हाँ ना तेरे से ना मेरे से जुदा मिला।
खुशियाँ खिलखिला चली आती हैं..

02.
शरणार्थी कैम्प में जो आग लग गया,
शरण हेतु नभ तंबू ले आगे आ गया।
मरु में हरियाली नहीं ख़ूबसूरती होती है..

03.
तितलियों की बेड़ियाँ कब कटेगी
अंग से अंग चुरा लेना तब कटेगी।
थके मन नापना कठिन रवां आस की

04.
क्षमता सब में हर समाधान की,
आज़मा सको जीवन गतिमान की।
उड़ान पर अभिमान नासमझ कौन है..

05.
प्यार प्यार है,  इश्क इबादत है
जब जुनूनी नहीं तो पहला क्या आखिरी क्या..,
अक्षर में बताया या ग्रन्थ लिख डाला
कारूनी नहीं तो पहला क्या आखरी क्या..,
छौने ने छू लिया ज्यों आकाश , बीज से बिरवा बरगद बन फैला दिया प्रकाश..

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 26 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सस्नेहाशीष व अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छोटी बहना

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-09-2020) को    "स्वच्छ भारत! समृद्ध भारत!!"    (चर्चा अंक-3837)    पर भी होगी। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  3. छौने ने छू लिया ज्यों आकाश , बीज से बिरवा बरगद बन फैला दिया प्रकाश..
    बहुत सुंदर

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  4. सुन्दर रचना

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  5. वाह !बेहतरीन दी सराहना से परे ।
    सादर प्रणाम

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  6. आदरणीया, बहुत अच्छी रचना! ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं:
    तितलियों की बेड़ियाँ कब कटेगी
    अंग से अंग चुरा लेना तब कटेगी।
    थके मन नापना कठिन रवां आस की।--ब्रजेन्द्रनाथ

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