सोच लो कुछ अनजान बातें समझना या
समझा पाना मुश्किल हो जाता है
01.
ख़ुद का नब्ज़ टटोला ख़ुदा मिला,
हाँ ना तेरे से ना मेरे से जुदा मिला।
खुशियाँ खिलखिला चली आती हैं..
02.
शरणार्थी कैम्प में जो आग लग गया,
शरण हेतु नभ तंबू ले आगे आ गया।
मरु में हरियाली नहीं ख़ूबसूरती होती है..
03.
तितलियों की बेड़ियाँ कब कटेगी03.
अंग से अंग चुरा लेना तब कटेगी।
थके मन नापना कठिन रवां आस की
04.
क्षमता सब में हर समाधान की,
आज़मा सको जीवन गतिमान की।
उड़ान पर अभिमान नासमझ कौन है..
उड़ान पर अभिमान नासमझ कौन है..
05.
प्यार प्यार है, इश्क इबादत हैजब जुनूनी नहीं तो पहला क्या आखिरी क्या..,
अक्षर में बताया या ग्रन्थ लिख डाला
कारूनी नहीं तो पहला क्या आखरी क्या..,
छौने ने छू लिया ज्यों आकाश , बीज से बिरवा बरगद बन फैला दिया प्रकाश..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 26 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका छोटी बहना
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-09-2020) को "स्वच्छ भारत! समृद्ध भारत!!" (चर्चा अंक-3837) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteछौने ने छू लिया ज्यों आकाश , बीज से बिरवा बरगद बन फैला दिया प्रकाश..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह !बेहतरीन दी सराहना से परे ।
ReplyDeleteसादर प्रणाम
आदरणीया, बहुत अच्छी रचना! ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं:
ReplyDeleteतितलियों की बेड़ियाँ कब कटेगी
अंग से अंग चुरा लेना तब कटेगी।
थके मन नापना कठिन रवां आस की।--ब्रजेन्द्रनाथ