मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच {म ग स म -गैर सरकारी संगठन /अन्तरराष्ट्रीय संस्था के} द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव (५ मार्च से १३ मार्च २०२४) में १२-१३ मार्च को शामिल होने का मौक़ा मिला! मेरे एक नाम में रूप अनेक थे
—देश-विदेश की लगभग १०४५ संस्थाओं में से तृतीय स्थान प्राप्त करने वाली लेख्य-मंजूषा की अध्यक्ष (भीड़ में तन्हा : कहे के त सब केहू आपन आपन कहावे वाला के बा, सुखवा त सब केहू बाँटे दुखवा बटावे वाला के बा...) सम्मान ग्रहण कर्त्ता
—मगसम:१७९९९/२०२१, पटना की संयोजक
—लेख्य-मंजूषा संस्था प्रायोजक थी तो उसकी प्रतिनिधित्वकर्त्ता
—लघुकथा-हाइकु की अध्येता
“जैसा हम जानते हैं कि हाइकु तीन पंक्ति और ५-७-५ वर्ण की रचना,”
“जापानी कविता है..”
“जापानी और कविता इन दोनों होने वाली बातों से मेरी सहमति नहीं है…! हम यह क्यों ना माने कि वेद में ५ वर्णी और ७ वर्णी ऋचाएँ होती हैं! बौद्ध धर्म के संग वेद भी भ्रमण के दौरान जापान गया हो और सन् १९१६ में रवीन्द्रनाथ टैगोर के संग घर वापसी हुई हो! समय के साथ रूप बदलना स्वाभाविक है और आज सन् २०२४ में भी प्रवासी कविता क्यों कहलाए!
—हाइकु पर हाइगा बनता है जिसमें कल्पना की कोई गुंजाइश नहीं और बिना कल्पना कविता कैसी…!
उदाहरणार्थ प्रस्तुत है—
मेड इन जापान तो लगेगा ही विदेशी है :)
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