“यह समीक्षाओं की छ खण्ड वाली पुस्तकें हैं जिनका प्रकाशन बेहद कम मूल्य में किया गया है!” वरिष्ठ अतिथिगण लोकार्पित पुस्तकों के संग तस्वीर उतरवा रहे थे और मंच संचालक अबीर से लेखक के चेहरे पर इंद्रधनुष बना रहे थे…! मौक़ा था राष्ट्रीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव में प्रतिभागी लेखक के पुस्तक लोकार्पण का…।
“लेखक महोदय अंजनेय भक्त हैं! अधिकांश समय मन्दिर में गुज़ारते हैं और मन्दिर के चढ़ावे में जो राशि मिलती है उसको ऐसी पुस्तकों को प्रकाशित करवाने हेतु प्रकाशक को सौंप देते हैं…?” मंच संचालक के इतना कहते ही पूरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट से विस्फारित आँखें वापिस लौटने लगीं!
“इन पुस्तकों को क्या कीजिएगा?” दर्शक दीर्घा से किसी ने प्रश्न किया!
“बाँट दो।” लेखक ने कहा।
“क्या?” किनकी-किनकी आवाज़ गूँजी पता नहीं चला लेकिन उसके बाद दर्शक दीर्घा में सुई गिरती तो शोर मचा देती। सभी पलकें गिराना भूल गए थे। सबका मुख इतना खुला था कि भान हो रहा हो ऐसे ही किसी के मुख में हनु सूक्ष्म रूप में टहल आये होंगे…।
थोड़ी देर में ही सभी पुस्तकों के आधे मूल्य की राशि पुनः लेखक के हिस्से में थीं। अध्यात्म के जुगनुओं ने सभागार से मंच तक कब्जा कर लिया था।
पत्थर तबीयत से उछाला गया है |
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