Saturday, 27 November 2021

अभिविन्यास

 "अद्धभुत, अप्रतिम रचना।

नपे तुले शब्दों में सामयिक लाजवाब रचना। दशकों पहले लिखी यह आज भी प्रासंगिक है। परिस्थितियाँ आज भी ऐसी ही हैं।

लाज़वाब.. एक कड़वी हकीकत को बयां करती सुंदर रचना।

रचना में अनकहा कितना सशक्त है। मार्मिक व सच्चाई को उजागर करती उम्दा रचना।

सशक्त, गजब, बेहतरीन, बहुत शुक्रिया, इस रचना को पढ़वाने का हृदय से आभार.. 

जैसे आदि-इत्यादि टिप्पणियों के बीच में कोई भी विधा की रचना हो तुम्हारे भाँति-भाँति के सवाल, तुम्हें ख़ुद में अटपटे नहीं लगते?"

"नहीं ! बिलकुल नहीं.. अध्येता हूँ। मेरा पूरा ध्यान विधा निर्देशानुसार अभिविन्यास पर रहता है।"

"प्रस्तुति कर्त्ता-कर्त्री रचनाकार से अकेले में विमर्श किया जा सकता है न? आँखों के किरकिरी बनने से बचना चाहिए.."

"यानि तुम्हारा गणित यह कहता है कि डरना चाहिए...। जो डर गया...,"

8 comments:

  1. क्या बात है ? कितना गूढ़ सृजन । सटीक भी संदेशप्रद भी ।

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  2. वाह ! महात्मा गब्बर की सूक्तियां बड़े काम की हैं !

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  3. जी गहन सृजन । आदरणीय ।

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  4. "नहीं ! बिलकुल नहीं.. अध्येता हूँ। मेरा पूरा ध्यान विधा निर्देशानुसार अभिविन्यास पर रहता है।"
    अध्येता की यही तो विशेषता होती है ।पर बाकी ऐसा सोचते हैं और पूछते भी है...
    लाजवाब।

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