"बड़ी अम्मा! बड़ी अम्मा, आपको दादी बुला रही हैं।"
"क्यों बुला रही हैं तेरी दादी? चल भाग! मैं तेरी बड़ी अम्मा नहीं हूँ। जाकर कह दे मैं नहीं आ रही हूँ।"
"क्यों नहीं आयेंगीं जीजी। जरा अम्मा के बारे में सोचिए, कुछ दिनों के अन्तराल में उन्होंने अपने दोनों बेटों को खो दिया।"
दो बेटा, एक बेटी और पति के संग मालतीदेवी बेहद खुशहाल जीवन बिता रही थीं। लेकिन हथेली पर रखा जलता कोयला सी अनुभूति का सच सबके सामने आ रहा था, छोटा बेटा मानसिक और कद-काठी में बेहद कमजोर पनप रहा था••। समयानुसार बेटी की शादी हो गयी। बड़ा बेटा नौकरी करने लगा। उसकी भी शादी हो गई। बड़ी बहू को देवर का संग पसन्द नहीं था। ननद का मायके आना उचित नहीं लगता। अब एक ही मकान के दो हिस्सों में दो चूल्हे जलने लगे। कालान्तर में छोटे बेटे की शादी एक पैर और एक आँख वाली कन्या से हो गयी। बड़ी बहू को अपने अलग हो जाने के फैसले पर बेहद खुशी होती लेकिन कुढ़न में जलती भी रहती। छोटी बहू के बनाए खाने के प्रशंसकों की संख्या बढ़ती जा रही थी। उसके चार-छ: सहयोगियों का परिवार भी पलने लगा था। अचानक हुए दुर्घटना ने पहले छोटे बेटे को तो कुछ दिनों के बाद बड़े बेटे को अपना ग्रास बना लिया।
"हमारा दु:ख एक बराबर है जीजी। इससे साझा लड़ने के लिए हम कन्धा से कन्धा मिला लेते हैं।"
"प्रेम के संग-साथ दबे पाँव क्रांति को आ जाना हो ही जाता है .. !" कहते हुए अनुरागी मालतीदेवी ने दोनों बहुओं को अपने अँकवार में भर लिया।
फायर ब्रिगेड क्या उखाड़ लेगी? बताओ? आग बस माचिस से ही थोड़ा लगे है |
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