"आपको सर्वोच्च शैक्षिक डिग्री अनुसन्धान उपाधि प्राप्त किए इतने साल गुजर गये! अब आप नौकरी करना चाहती हैं। आपने अब तक कहीं नौकरी क्यों नहीं कीं?"
"बहुत जगहों पर आवेदन फ़ार्म भरा लेकिन साक्षात्कार के समय छँटनी हो जाती रही।"
"क्यों छँटनी हो जाती रही? आपके पास अनुभव प्रमाण पत्र भी नहीं फिर उम्मीद करती हैं कि हम आपको नौकरी पर रख लें?"
"मेरी कुरूपता सबसे बड़ी बाधा रही मेरी नौकरी में!"
"आप इतनी कुरूप हुईं कैसे?"
"उछाले गये खौलते पानी की राह में मेरा चेहरा आ गया!"
"किसने ऐसा दुःसाहस किया? आपका जीवन नरक...,"
"कोई अपना! परन्तु, इतने वर्षों तक ना जाने कितने लिजलिजे ग़लीज़ स्पर्श से बचाव का उपाय भी रहा।"
"यहाँ आपकी नौकरी पक्की की जाती है।"
सच
ReplyDeleteसादर प्रणाम
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
सुंदर, भावपूर्ण
ReplyDeleteबड़ी सच्चाई लिखी आपने।
ReplyDeleteसराहनीय लघुकथा
प्रभावशाली सृजन । सादर सस्नेह वन्दे !
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteदुखड़ा सुनाया नौकरी पक्की...
ReplyDeleteसुन्दर चेहरा नहीं तो नौकरी नहीं
अजीब स्थिति हैं , रंग रुप है या फिर दिल को छूती कहानी...सनसनीखेज !
काबिलियत भी कोई चीज होती है
लाजवाब सृजन।
चेहरा देख नौकरी, . अच्छी कहानी है सच्ची सच्ची
ReplyDelete''इतने वर्षों तक ना जाने कितने लिजलिजे ग़लीज़ स्पर्श से बचाव का उपाय भी रहा।"
ReplyDeleteआह!! एक असहनीय पीड़ा और उससे बचाव का रास्ता भी कितना भयावह!!
सभ्य समाज का स्याह पक्ष जो आज की कहीं न कहीं कड़वी सच्चाई को उद्घाटित करता है।मर्मातंक लघुकथा जो दिल को बींध गयी।
हार्दिक बधाई प्रिय दीदी 🙏