Friday 27 October 2017

"समाज का कोढ़"


"सुना है लघुकथा सम्मेलन होने जा रहा है..."
"आपने सही सुना है"
"आपकी संस्था लघुकथाकारों को सम्मानित भी कर रही है... कितना खर्च आता होगा... ? मेरी भी इच्छा है कुछ लोगों को सम्मान पत्र दिलवाने का ?"
"मेरा जितना सामर्थ्य है उतना रकम मैं आयोजनकर्ता को दे देता हूँ । उसके आगे का सारा निर्णय आयोजन कर्ता करते हैं ।"
"ऐसा कीजिये न कि इस बार मुझे सम्मान पत्र दिलवा दीजिये"
"अरे ऐसा कैसे हो सकता है? आपने लघुकथा क्षेत्र में क्या काम किया है?"
"लेखन से प्रसिद्धि पाया हूँ... दूरदर्शन रेडियो में पाठ किया हूँ... पेपर में छपता हूँ... अन्य राज्यों में सम्मान पत्र पा चुका हूँ...।"
"लघुकथा के उत्थान व प्रचार-प्रसार के लिए क्या इतना ही काफी है, केवल अपना स्वार्थ साध लेना? पहचान और पैसे के बल पर न? हड्डी पर झपटे को जाल में फंसा लेना... किसी के मजबूरियों का फायदा उठाना आपको खूब आता है... कोई बता रहा था कि आप अपनी लघुकथा लिखवाने के लिए भी पैसे खर्च करते हैं क्यों कि किसी को भेजी गई लघुकथा आधी है या पूरी, आप समझ नहीं पाते हैं..."

"बिक रहा है कुछ तो खरीदने में हर्ज ही क्या है... जिसे आप हड्डी कह रहे हैं , उसे मैं सहयोग समझता हूँ…"

1 comment:

  1. वाह.....
    बहुत खूब..
    आदरणीय दीदी
    सादर नमन

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