Sunday, 19 September 2021

पिण्डदान


"सितम्बर की उमस भरी दोपहरी में नालन्दा के खंडहरों में पुस्तक लोकार्पण करने का निर्णय करना क्या बुद्धिमत्ता है?" सम्पादक की ओर पत्रकार का प्रश्न उछलकर आया।

"क्या करूँ..! पितृपक्ष लगभग सितम्बर में ही आता है। वैसे भी जब मन अवकाश में होता है.. शीतलता उष्णता का अनुभव कर लेता है। अगर मजबूरी में आना होता तो शायद बुद्धिमानी नहीं होती.. लेकिन हमारे पास वातानुकूलित स्थल होने बाद भी हम यहाँ आये। संस्थापक कुमारगुप्त प्रथम को विश्वास दिलाना था... स्वर्ण काल का इतिहास दोहराया तिहराया जा सकता है।"

"आपकी हैसियत एक बूँद की है और ऐसी बात...,"

"क्या बिना बूँद के... झरना, नदी या समुन्दर की कल्पना...,"


'अवमानना'


चिलचिलाती धूप और भादो की उमस भरी दोपहरी में घर-घर जाकर वैक्सीन ले लेने के लिए अनुरोध कर रहे अध्यापक अध्यापिकाएं। बहुत देर तक दरवाजा थपथपाने पर दरवाजा खोलती महिला के चेहरे पर क्रोध झुँझलाहट स्पष्टरूप से दृष्टिगोचर हो रहा था,"आप! आज क्या काम है? कुछ दिनों पहले ही तो जनगणना हुआ है..,"

"जी! मैं तो सन्देशवाहक हूँ...। आज राष्ट्रनायक का जन्मदिन है। जनमोत्स्व पर सौ फी सदी वैक्सिनेशन करवाना है..,

"अच्छा तो अब आपलोगों को इस कार्य में भी लगा दिया गया। राष्ट्रसेवक को राष्ट्रनायक कहकर ही तो अनुरोध को आदेश में परिवर्त्तित कर दिया जा रहा है..।"

"हम तो मजबूर हैं , 'नौकरी करी तो ना ना करी' के अधीन। आप अपनों के साथ वैक्सीन लेने स्थल पर जरूर जाएं..,"

"आज विश्वकर्मा पूजा है.. सौ फी सदी क्या पच्चीस फी सदी भी वैक्सिनेशन नहीं हो पायेगा।"

"हमारा वेतन कट जाएगा..."

"क्या फर्क पड़ता है...? यूँ भी सरकारी विभाग में आपके मजदूरी के बहुत भागीदार हैं...,"

4 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-9-21) को "बचपन की सैर पर हैं आप"(चर्चा अंक-4194) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा




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  2. सच कहा आपने सरकारी विभाग में मजदूरी के बहुत भागीदार होते हैं..

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