Friday, 10 September 2021

कृतघ्न

01. मेघ के स्पर्धा

अभिनय की मुद्रा

हवाई यात्रा

02. हौले से चढ़े

एक-एक सीढ़ियाँ

गुरु का ज्ञान

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"ओ! मिट्टी के लोदा। जितना साल वनवास भोगा गया था न उससे कुछ साल ज्यादा ही लगा था तुम्हें गढ़ने में... वनवास खत्म होते-होते दशहरा दीवाली मनी थी.. तुम से गढ़ने वाले कुम्हार पर कितने आरोप लगाए गए... शिशुपाल की सी हरकत..."

"जिसने गढ़ा था उसने मिटाने की कोशिश भी किया..,"

"धत्त! जिसकी आत्मा मर चुकी हो उसको और कोई क्या मिटा सकेगा...।"

9 comments:

  1. आत्मा अमर होती है सुना था| मर गई?
    सुन्दर

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(११-०९-२०२१) को
    'मेघ के स्पर्धा'(चर्चा अंक-४१८४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

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  3. मारक और प्रभावी ।

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  4. बहुत ही सुंदर....

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  5. हौले से चढ़े
    एक-एक सीढ़ियाँ
    गुरु का ज्ञान
    सादर नमन

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  6. सार्थक संदेश देता सृजन ।

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

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