आभार गूगल
तब शिखर ने बाँधा ,
नभ का साफ़ा ...
जब क्षितिज पर छाता ,
भाष्कर भष्म होता ,
लगता मानो किसी
घरनी ने घरवाले के लिए ,
चिलम पर फूँक मार ,
आग की आँच तेज की है ....
घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
जीवन की जंजाल बनी ,
गीली जलावन ,जी जला रहा है.....
लौटे परिंदों ने पता बता दी है ....
किसान ,किस्मत के खेतो में ,
खाद-पानी पटा घर लौट रहा है ....
बैलों के गले में बंधी घंटी ,
हलों के साथ सुर में सुर मिला
संदेसा भेज रहे हैं .... !!
मंत्रमुग्ध करता सा माहौल!
ReplyDeleteघरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
ReplyDeleteजीवन की जंजाल बनी ,
गीली जलावन ,जी जला रहा है.....बेहतरीन
बैलों के गले में बंधी घंटी से आता सन्देश बहुत सुंदर लगा.
ReplyDeleteसुंदर कविता.
लगता मानो किसी
ReplyDeleteघरनी ने घरवाले के लिए ,
चिलम पर फूँक मार ,
आग की आँच तेज की है ....
सुन्दर कल्पना
सार्थक और सामयिक , आभार .
ReplyDeleteमधुर सन्देश .....
ReplyDeleteमन को छूती रचना ....बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन भावमय करते शब्द ...
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक ... भावमय कविता ...
ReplyDeleteचिलम पर फूँक मार ,
ReplyDeleteआग की आँच तेज की है ......बहुत सुंदर.
सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर
अनु
घरनी ने घरवाले के लिए ,
ReplyDeleteचिलम पर फूँक मार ,
आग की आँच तेज की है ....
घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
जीवन की जंजाल बनी ,
गीली जलावन ,जी जला रहा है.....
बहुत ही सुंदर रचना ...
पहली बार इस ब्लॉग पर आया ...
अच्छा लगा ..
बहुत सुन्दर कविता ...
ReplyDeleteसुंदर सन्देश देती कविता.
ReplyDeleteबधाई.
तब शिखर ने बाँधा ,
ReplyDeleteनभ का साफ़ा ...
जब क्षितिज पर छाता ,
भाष्कर भष्म होता....
क्या बात है ....
विभा जी बधाई इस सुंदर पंक्तियों के लिए ....!!