Saturday 7 July 2012

# संदेसा #



                                             आभार गूगल 
तब शिखर ने बाँधा ,

नभ का साफ़ा ...

जब क्षितिज पर छाता , 

भाष्कर भष्म होता ,

लगता मानो किसी

घरनी ने घरवाले के लिए ,

चिलम पर फूँक मार ,

आग की आँच तेज की है ....

घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,

जीवन की जंजाल बनी ,

गीली जलावन ,जी जला रहा है.....

लौटे परिंदों ने पता बता दी है ....

किसान ,किस्मत के खेतो में ,

खाद-पानी पटा घर लौट रहा है ....

बैलों के गले में बंधी घंटी ,

हलों के साथ सुर में सुर मिला

संदेसा भेज रहे हैं .... !!


15 comments:

  1. मंत्रमुग्ध करता सा माहौल!

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  2. घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,

    जीवन की जंजाल बनी ,

    गीली जलावन ,जी जला रहा है.....बेहतरीन

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  3. बैलों के गले में बंधी घंटी से आता सन्देश बहुत सुंदर लगा.

    सुंदर कविता.

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  4. लगता मानो किसी

    घरनी ने घरवाले के लिए ,

    चिलम पर फूँक मार ,

    आग की आँच तेज की है ....
    सुन्दर कल्पना

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  5. सार्थक और सामयिक , आभार .

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  6. मन को छूती रचना ....बहुत सुंदर

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  7. बेहतरीन भावमय करते शब्‍द ...

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  8. सार्थक और सामयिक ... भावमय कविता ...

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  9. चिलम पर फूँक मार ,

    आग की आँच तेज की है ......बहुत सुंदर.

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  10. सुन्दर रचना...

    सादर
    अनु

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  11. घरनी ने घरवाले के लिए ,
    चिलम पर फूँक मार ,
    आग की आँच तेज की है ....
    घरनी को चूल्हे की भी है चिंता ,
    जीवन की जंजाल बनी ,
    गीली जलावन ,जी जला रहा है.....

    बहुत ही सुंदर रचना ...
    पहली बार इस ब्लॉग पर आया ...
    अच्छा लगा ..

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  12. बहुत सुन्दर कविता ...

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  13. सुंदर सन्देश देती कविता.

    बधाई.

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  14. तब शिखर ने बाँधा ,

    नभ का साफ़ा ...

    जब क्षितिज पर छाता ,

    भाष्कर भष्म होता....

    क्या बात है ....
    विभा जी बधाई इस सुंदर पंक्तियों के लिए ....!!

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