आकाश को कागज और
समुन्दर को स्याही बना लिया जाए और
तब कोई रचना की जाए तो भी ,
पापा - माँ की और उनलोगों के ममता की ,
वर्णन
नहीं किया जा सकता ..... !!
२० अगस्त मेरे लिए मनहूस :'(
आज मेरी माँ की पुण्य-तिथि है !
मेरी माँ को गुजरे 33 साल गुजर गए .... :'(
मैं आभारी हूँ ,अपनी जन्मदात्री की .... !!
15 वर्ष तो गुजर गए ....
15 वर्ष तो गुजर गए ....
नकचढ़ी - मनसोख बेटी बने रहने में ....
माँ कुछ भी सिखाना चाहती ,
उसमें मेरा टाल-मटोल होता ,
किसी दिन .... किसी दिन ,अगर चावल चुनने बोलती ,
मेरा सवाल होता *आज ही बनाना है .... ?
तब ,तभी मुझे पढ़ना होता ....
मुझे जब जो चाहिए ,तभी चाहिए होता ....
पापा का नाश्ता-खाना निकलता ,उसी में मुझे खाना होता ....
पापा के खाना खा के उठने के पहले ,मुझे उठ जाना होता ....
अलग खाने से या पापा के खाने के बाद ,
उठने से थाली हटाना होता ....
जो मुझे मंजूर नहीं होता ,भैया जो नहीं हटाता .... !!
(छोटी सी घटना :- मैं ,स्कूल के ,15 अगस्त के झंडोतोलन की हिस्सा थी .... मुझे नई ड्रेस चाहिए थी(वो तो एक बहाना था ,मुझे तो रोज नई चाहिए होता था) ....11अगस्त को स्कूल से आकर शाम में बोली मुझे नयी ड्रेस चाहिए....13अगस्त को शाम में नयी ड्रेस हाजिर .... लेकिन गड़बड़ी ये थी मुझे चुड़ीदार पैजामा चाहिए था वो सलवार था .... रोने-चिल्लाने के साथ सलवार के छोटे-छोटे टुकड़े कैंची से कर दी ....
मझले भैया के बदौलत 14अगस्त को शाम तक नई चुड़ीदार पैजामा हाजिर .... :D)
पापा ज्यादा प्यारे लगते ,
वे अनुशासन नहीं करते ....
भैया माँ को चढ़ाते ,
ई *बबुआ के दूसरा के घरे जाये के बा ,
लड़की वाला कवनों गुण नइखे ,
हंसले त छत उधिया जाला* .....
माँ की भृकुटी क्यों तनी रहती ,
मैं आज तक भी नहीं समझी ,
मैंने बेटी नहीं *जना है ....
लेकिन भैया के मरने के साथ ,
आपका आत्मा से मरना खला है ....
एक बेटी-एक बहन ,एक समय में
दोनों की माँ की भूमिका अदा की है ....
एक हथेली की थपकी ,
वे अनुशासन नहीं करते ....
भैया माँ को चढ़ाते ,
ई *बबुआ के दूसरा के घरे जाये के बा ,
लड़की वाला कवनों गुण नइखे ,
हंसले त छत उधिया जाला* .....
माँ की भृकुटी क्यों तनी रहती ,
मैं आज तक भी नहीं समझी ,
मैंने बेटी नहीं *जना है ....
लेकिन भैया के मरने के साथ ,
आपका आत्मा से मरना खला है ....
एक बेटी-एक बहन ,एक समय में
दोनों की माँ की भूमिका अदा की है ....
एक हथेली की थपकी ,
भाई(बहुत छोटा था,रोने लगता था) जग न जाए....
एक हथेली की थपकी ,माँ कुछ पल सो जाय ....
और हर रात मेरी जागते कट जाती .....
एक हथेली की थपकी ,माँ कुछ पल सो जाय ....
और हर रात मेरी जागते कट जाती .....
आप ये नहीं सोचीं ,बचे हम ,
चारो(भाई-बहन) को भी आपकी जरुरत होगी ....
आप ये क्यों न सोची ....
जो चला गया वो आपका न था ,
जो आपका था , आपके साथ था ....
कुछ तो सोची होती .... !!
चारो(भाई-बहन) को भी आपकी जरुरत होगी ....
आप ये क्यों न सोची ....
जो चला गया वो आपका न था ,
जो आपका था , आपके साथ था ....
कुछ तो सोची होती .... !!
जब मेरी शादी हुई .... ,
बिदाई के वक्त ,घर-भराई के चावल ,
आपके आँचल के मोहताज रहे ....
जब पग-फेरे के वक्त या जब-जब घर आई ,
आपके आलिंगन की मोहताज रही ....
जिन्दगी ने जो लू के थपेड़े दिए ,
आपकी ममता ,शीतल छाँव तो देती ....
52 की हूँ दिमाग कहता है ,
आज तक ,आप ना होती ....
दिल करता है ....
आप होतीं ,गोद में सर रख ,
रोती-खिलखिलाती-सोती ....
आपको ,किसने हक़ दिया ,
आप मेरे गोद में ,चिरनिंद्रा में सो गईं ....
जब पग-फेरे के वक्त या जब-जब घर आई ,
आपके आलिंगन की मोहताज रही ....
जिन्दगी ने जो लू के थपेड़े दिए ,
आपकी ममता ,शीतल छाँव तो देती ....
52 की हूँ दिमाग कहता है ,
आज तक ,आप ना होती ....
दिल करता है ....
आप होतीं ,गोद में सर रख ,
रोती-खिलखिलाती-सोती ....
आपको ,किसने हक़ दिया ,
आप मेरे गोद में ,चिरनिंद्रा में सो गईं ....
माँ - मार्गदर्शिका ,सखी खो गई .... !!
आपने बीच मंझधार में छोड़ा है ....
माँ ,मैं जो हूँ .... जैसी हूँ .... आपने गढ़ा है .... !!
माँ ,मैं जो हूँ .... जैसी हूँ .... आपने गढ़ा है .... !!
बहुत मार्मिक लिखी हैं आंटी!
ReplyDeleteआदरणीया माता जी को हार्दिक श्रद्धांजलि!
सादर
हम बावन के हो जाए या अठावन के , माँ के आँचल दुआओं आशीष को कभी भूला नहीं सकते ...
ReplyDeleteमां को नमन !
जी भर आया विभा जी....
ReplyDeleteआँखें नम हो चलीं....
लगता है ..माँ है कहीं आस पास.....शायद आपकी लेखनी में स्याही बन दौड रहा हो उनका नेह....
श्रद्धा सुमन..
सादर
अनु
बुजुर्गों को याद करने से खुद को बल मिलता है , दिल को सुकून मिलता है इसलिए उन्हें याद करते रहना चाहिए |
ReplyDeleteसमय ना खुशियों की यादों को कम कर पाता है , न घाव भरते हैं !!!
ReplyDeleteयादें मन की पीड़ा को सहलाता है..समय मलहम का काम करता है..मन भर आया ..
ReplyDeleteshabd nahi kehne ko ki kaisa likha hai....na koi anklan hai...man ko chu gayi ye rachna....ma shabd khud hi sab kuch keh jata hai......
ReplyDeletesadar...
मान की स्मृति मेन बहुत संवेदनशील पोस्ट .... माँ को नमन और श्रद्धांजली ....
ReplyDeleteबहुत मार्मिक ! आपकी माँ जी को विनम्र श्रद्दान्जलि !
ReplyDeleteजब हमारे पास कुछ होता है...अक्सर उसकी क़द्र नहीं करते हम..! :(
बहुत खलता होगा...उस ममता के आँचल का साया सिर से उठ जाना...! पर बीता वक़्त लौटता भी तो नहीं! आपकी रचना एक सीख है...जिसे हम सब जानते हैं..मगर सोचते हैं तब..जब वक़्त हाथों से निकल जाता है..! शुक्रगुज़ार हूँ भगवान की....कि उसने अभी अपने साए से महरूम नहीं किया...!!!
~सादर !
पढ़ कर मन बहुत भारी हो गया ..... मुझे लगता है कि शायद ही कोई ऐसा होगा जो माँ के अनुशासन ,उनके दुलार को उनके जीवित रहते समझ पाता हो .....
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण,मार्मिक और हृदयस्पर्शी संस्मरण.
ReplyDeleteमाँ ईश्वर की सर्वप्रथम पहचान है.
माँ को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि.
आँखें नम कर गयी आपकी रचना ....वाकई जब हमसे कोई छिन जाता है, तभी हम चेतते हैं ....और माँ का आँचल ...इश्वर करे हर बच्चे के सर पर बना रहे ....
ReplyDeletebahut hi bhawnatmak .....
ReplyDeleteमाता के प्रति 'मार्मिक' -'काव्यात्मक' श्रद्धांजली का उपयुक्त प्रस्तुतीकरण किया है। मैं तो अपने बहन-भाई ही नहीं और भी तमाम लोगों की आँखों की सिर्फ इसलिए किरकिरी हूँ कि माता -पिता के न रहने के 17 वर्षों बाद आज भी उनके निर्धारित नियमों पर चल रहा हूँ।
ReplyDeleteआपने माँ को याद किया यही उचित है।
माँ ,मैं जो हूँ .... जैसी हूँ .... आपने गढ़ा है ..
ReplyDelete.. माँ को नमन और श्रद्धांजली ....
भावमय कर गई यह प्रस्तुति ... मां को सादर नमन
ReplyDeleteवंदे मातरम !
ReplyDeleteमाँ मैं निशब्द हूँ आज |
ReplyDeleteatyant maarmik ...maa aur beti ka rishta aesa hi hota hain ...
ReplyDeleteआपकी बातें पढ़ीं फोटो भी देखी , क्या कहूं कौन खुशनसीब अधिक आप या वो जो आपके अपने जिनको इतना चाहती हैं आप।
ReplyDeleteआप एक अचछी इंसान हैं , इतना कहना है मुझे
ReplyDeleteऔर सब मायने रखते , बेमानी कुछ भी नहीं जो लिखा आपने
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