*
बदला बर्बाद करती है जिंदगी *
एक बच्ची ने एक कहानी पढ़ी ,
आप सबों ने भी ,वो कहानी पढ़ी होगी ?
एक बच्चा देखता था ,अपनी माँ को ,उसकी दादी को ....
एक बच्ची ने एक कहानी पढ़ी ,
आप सबों ने भी ,वो कहानी पढ़ी होगी ?
एक बच्चा देखता था ,अपनी माँ को ,उसकी दादी को ....
टूटे बर्तनों में खाना-पानी देती थी
.... जब ....
दादी के मौत के बाद माँ बर्तन फेकनें लगती है ....
बच्चा ,माँ से बोलता है ....
माँ इन बर्तनों को रहने दो ....
एक दिन जब मैं बड़ा होउंगा और तुम बुढ़ी ....
इन बर्तनों की जरूरत होगी ....
जैसे संस्कार बच्चे माता-पिता में देखते ,वैसा ही तो सिखते हैं ... ?
कहानी पढ़ते बच्ची ने संकल्प लिया , अपने बुजुर्गों के साथ ,
कुछ ऐसा-वैसा नहीं होने देगी .... विरोध करने की ठान ली
चाहे उसकी माँ ,दादी के साथ करे या भाभियाँ ,माँ के साथ करे ....
मगर === किन्तु === लेकिन ,उसकी माँ अल्पायु निकली ....
40-42 की उम्र में बच्चों को अनाथ कर गई ....
ना माँ के व्यवहार दादी के साथ देखे ,
क्यों कि तब तक दादी का ही शासन - काल था
और ना भाभियों का व्यवहार ,माँ के साथ ,
क्यों कि वे आई ही नहीं थीं ....
भाइयों की शादी जो नहीं हुई थी ....
बच्ची बड़ी हुई .... शादी हुई .... उसी संकल्प के साथ नया जीवन शुरू की ....
ना मान मिला .... ना सम्मान .... प्यार से तो छत्तीस का आंकड़ा रहा ....
रिश्ते तार-तार होते .... दिल टूटता रहा .... क्रोधित तो बहुत होती ....
गुस्सा बहुत आता .... इन्तजार करने लगी शासन काल समाप्त होने का ....
सोचती कभी तो ये बूढ़े-कमजोर होंगें === कभी तो उस पर आश्रित होगें ....
खूब सतायेगी .... गिन-गिन कर बदला लेगी ....
बड़े बुजुर्ग बने .... तब तक उस बच्ची के भी तनाव-अवसाद के कारण ,
शारीरिक - मानसिक शिथिलता ,बहुत सारे बीमारी ...
कभी खून का ना बनना ,कभी मुक-बधिर हो जाना ....
कभी-कभी बेहोश हो जाना .... घुटना,पीठ,कमर के दर्द से परेशान ....
खुद की जिन्दगी बोझ लगती .... जीवन समाप्त करने की सोचती .....
फिर भी उसने छोटे सोच वाले बड़े ,बुजुर्ग बने , के सेवा का बीड़ा उठाया ....
आज अपने एक बुजुर्ग को मृत्यु की तरफ बढ़ते देख ,उसे ऐसा प्रतीत होता है ....
मानो भीष्म-पितामह बाणों के शय्या पर लेटे हों ..... और वो अर्जुन हो ...
उसका मन चीत्कार कर उठता है ....
उसे फिर से अनाथ होने का डर सताने लगा है ....
उसे अहसास है ,बुजुर्ग हैं तो घर में रौनक है ....
उसकी विचार हमेशा उसके साथ रही * बदला बर्बाद करती है जिंदगी * ....
उसने भी तो बेटा जना है .... थोड़ी स्वार्थी हो गई .... ??????????
दादी के मौत के बाद माँ बर्तन फेकनें लगती है ....
बच्चा ,माँ से बोलता है ....
माँ इन बर्तनों को रहने दो ....
एक दिन जब मैं बड़ा होउंगा और तुम बुढ़ी ....
इन बर्तनों की जरूरत होगी ....
जैसे संस्कार बच्चे माता-पिता में देखते ,वैसा ही तो सिखते हैं ... ?
कहानी पढ़ते बच्ची ने संकल्प लिया , अपने बुजुर्गों के साथ ,
कुछ ऐसा-वैसा नहीं होने देगी .... विरोध करने की ठान ली
चाहे उसकी माँ ,दादी के साथ करे या भाभियाँ ,माँ के साथ करे ....
मगर === किन्तु === लेकिन ,उसकी माँ अल्पायु निकली ....
40-42 की उम्र में बच्चों को अनाथ कर गई ....
ना माँ के व्यवहार दादी के साथ देखे ,
क्यों कि तब तक दादी का ही शासन - काल था
और ना भाभियों का व्यवहार ,माँ के साथ ,
क्यों कि वे आई ही नहीं थीं ....
भाइयों की शादी जो नहीं हुई थी ....
बच्ची बड़ी हुई .... शादी हुई .... उसी संकल्प के साथ नया जीवन शुरू की ....
ना मान मिला .... ना सम्मान .... प्यार से तो छत्तीस का आंकड़ा रहा ....
रिश्ते तार-तार होते .... दिल टूटता रहा .... क्रोधित तो बहुत होती ....
गुस्सा बहुत आता .... इन्तजार करने लगी शासन काल समाप्त होने का ....
सोचती कभी तो ये बूढ़े-कमजोर होंगें === कभी तो उस पर आश्रित होगें ....
खूब सतायेगी .... गिन-गिन कर बदला लेगी ....
बड़े बुजुर्ग बने .... तब तक उस बच्ची के भी तनाव-अवसाद के कारण ,
शारीरिक - मानसिक शिथिलता ,बहुत सारे बीमारी ...
कभी खून का ना बनना ,कभी मुक-बधिर हो जाना ....
कभी-कभी बेहोश हो जाना .... घुटना,पीठ,कमर के दर्द से परेशान ....
खुद की जिन्दगी बोझ लगती .... जीवन समाप्त करने की सोचती .....
फिर भी उसने छोटे सोच वाले बड़े ,बुजुर्ग बने , के सेवा का बीड़ा उठाया ....
आज अपने एक बुजुर्ग को मृत्यु की तरफ बढ़ते देख ,उसे ऐसा प्रतीत होता है ....
मानो भीष्म-पितामह बाणों के शय्या पर लेटे हों ..... और वो अर्जुन हो ...
उसका मन चीत्कार कर उठता है ....
उसे फिर से अनाथ होने का डर सताने लगा है ....
उसे अहसास है ,बुजुर्ग हैं तो घर में रौनक है ....
उसकी विचार हमेशा उसके साथ रही * बदला बर्बाद करती है जिंदगी * ....
उसने भी तो बेटा जना है .... थोड़ी स्वार्थी हो गई .... ??????????
सोचने लगी है ,अगर देगी नहीं तो पायेगी कैसे ... उसे भी तो बूढी होना है
....
उसके सामने कोई उद्दाहरण
नहीं था ... वो उद्दाहरण बन गई है ,सबके लिए ....
जैसे संस्कार ,बच्चे ,माता-पिता में देखते ,वैसा ही तो सिखते हैं .... !!
जैसे संस्कार ,बच्चे ,माता-पिता में देखते ,वैसा ही तो सिखते हैं .... !!
सही कहा आपने माता-पिता के संस्कार तो बच्चे लेते ही हैं ....
ReplyDeleteसार्थक रचना !
मार्मिक शब्दों मे सच्ची बात कही है आंटी !
ReplyDeleteसादर
सार्थक संदेश देती बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसही कहा आपने..अच्छे संस्कार मन का मैल धो देते हैं...
ReplyDeleteजिसने बुरा किया...उसे कष्ट में देख कर उसके साथ बुरा करने का ख्याल भी नहीं आता...बल्कि मन द्रवित हो जाता है.
यह सच है की बच्चे जैसा अपने माता पिता में संस्कार देखते है वैसा ही सीखते है । आपकी रचना आज के परिवेश के बिलकुल सटीक है ।
ReplyDeleteमाँ बाप के अच्छे संस्कारों से बच्चों का जीवन संवरता है,,,
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,,,,
RECENT POST...: जिन्दगी,,,,
इकतरफा संस्कार के परिणाम भी भयानक होते हैं ... क्या तय किया जाए !
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी सार्थक संदेश देती सुंदर प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteसुन्दर आलेख के लिए बधाई...
ReplyDeleteजो देंगे वही पाएंगे ..... सार्थक सीख देती कहानी ...
ReplyDeleteआज भी संस्कार का उतना ही महत्व हैं जितना की कल बीते समय में था ...संस्कार अमूल्य धरोहर हैं .....
ReplyDeletebahut sahi likhi hai apne.......sarthak rachna
ReplyDeletesanskaron se alag jeevan ki parikalpna bemani hogi bahut hi prabhavshali rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteएक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण पढ़ने को मिला .....बिलकुल आप से सहमत हो गया की बदला जिन्दगी को बर्बाद कर देती है
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