देश-प्रेम के पलड़े पे पसंगा निकला .... ?
कल ===
हमारे पास कोहिनूर था ....
आज ===
हमारे चेहरे पे नूर भी नहीं ....
कल ===
हमारे देश में शहरों-गांवो के छोटे-छोटे टुकड़े थे ...
कारण थे ===
शिक्षा का प्रचार-प्रसार ना होना ....
आवागमन का साधन ना होना ....
आज ===
हमारे देश में बड़े-बड़े राज्य के दो टुकड़े हो रहे हैं ....
कारण हैं ===
शिक्षा का अत्यधिक प्रचार-प्रसार होना ....
आवागमन का अत्यधिक साधन होना ....
कल ===
हम गुलामी के जंजीरों में बंधे थे ....
कल ===
हम गुलामी के जंजीरों में बंधेगें ....
कल (1979-1982) ===
मैं और मेरी भाभी फिल्म देखने जाते ....
हमारे पास 5Rs होता ....
उसमे से भी बचत होता ....
(1.30+1.30 = 2.60 का दो टिकट ....
50+50= 1Rs का रिक्शा-भाड़ा ....
50+50= 1Rs का मूंगफली ....
40 paise बच जाते )
हम सारे फिल्म देखते थे ....
आज 2012 ===
मैं और मेरे पति फिल्म देखने जाते हैं ....
300 का तो टिकट ही होता ....
मूंगफली खाने में शर्म आती ,
पिज़ा-बरगर-रौल का ज़माना है ....
रिक्शा का ज़माना नहीं रहा ....
अपनी मोटर-कार है ....
पेट्रोल की कीमत जोड़ दूँ ....
500+500 के 2 पत्ते तो निकल ही जाते हैं ....
साल में एक या दो फिल्म देख लेते हैं ....
कल (1994-2000) ===
मटर 5Rs में एक Kg मिलता था ...
चार पड़ोसी पूरी टोकरी की मोल करते ....
पूरी टोकरी(20Kg-25Kg) हम आपस में बाँट लेते ....
आज 2012 ===
500Rs में 2.5Kg मटर मिलता है ....
500Rs में 1Kg हरा चना मिलता है ....
खाने को जी ललचाता रहता है ....
एक ज़माना था === नमक का
पुड़िया बना खेतों में ही
पहुँच जाती ,दाना छुड़ा खा जाती ,
छिलके पौधों में ही रह जाते ....
कल (1970-1975) ===
पापा ,माँ के लिए 75Rs में साड़ी लाते ,
माँ ख़ुशी से झूम उठती ....
गजब का नूर होता उनके चहरे पर ....
आज (2011-2012) ===
मेरे पति मुझे 750Rs की साड़ी दिला रहे होते ,
मेरी निगाहें 7500Rs की साड़ी पर टिकी होती ....
कल (1969-1979) ===
ढिबरी-मोमबत्ती की रौशनी में ,
हम 5भाई-बहन को खाना खिलाती ....
हम तृप्त होते .... माँ के चेहरे पर नूर होता ....
आज (2011-2012) ===
मैं और मेरा बेटा ,
5star होटल में ,
कैंडिल लाइट डिनर करने जाते हैं ....
ना उसके चेहरे पर तृप्ति होती हैं ,
ना मेरे चेहरे पर नूर होता हैं ....
कल ===
पापा छुट्टियों में गाँव हमें लाया करते थे
टिन के बक्से में कपड़े होते ,
दो ट्रेन बदल स्लीपर में हम आते ....
गाँव के तालाब किनारे === आम-कटहल के बागीचे ....
गोंसार के भुजे अनाज === इंख के रस में पके शक्करकन्द ....
बस मेरे चेहरे पर नूर लाने के लिए काफी होते थे ....
आज ===
छुट्टियों में शिमला - नैनीताल जाती हूँ ....
(बस चले तो स्विजरलैंड चली जाऊं) ....
अपने देश की गर्मी बहुत परेशान करती है ....
ट्रेन नहीं लुभाती ... हवाई सफर चाहिए ....
कल तो ना जाने उन
हालातों का कौन जिम्मेदार था ....
आज इन हालातों की ,
जिम्मेदारी === हिस्सेदारी === भागीदारी ,
मेरी === और मेरी === सिर्फ मेरी .... !!
कल ===
हमारे पास कोहिनूर था ....
आज ===
हमारे चेहरे पे नूर भी नहीं ....
कल ===
हमारे देश में शहरों-गांवो के छोटे-छोटे टुकड़े थे ...
कारण थे ===
शिक्षा का प्रचार-प्रसार ना होना ....
आवागमन का साधन ना होना ....
आज ===
हमारे देश में बड़े-बड़े राज्य के दो टुकड़े हो रहे हैं ....
कारण हैं ===
शिक्षा का अत्यधिक प्रचार-प्रसार होना ....
आवागमन का अत्यधिक साधन होना ....
कल ===
हम गुलामी के जंजीरों में बंधे थे ....
कल ===
हम गुलामी के जंजीरों में बंधेगें ....
कल (1979-1982) ===
मैं और मेरी भाभी फिल्म देखने जाते ....
हमारे पास 5Rs होता ....
उसमे से भी बचत होता ....
(1.30+1.30 = 2.60 का दो टिकट ....
50+50= 1Rs का रिक्शा-भाड़ा ....
50+50= 1Rs का मूंगफली ....
40 paise बच जाते )
हम सारे फिल्म देखते थे ....
आज 2012 ===
मैं और मेरे पति फिल्म देखने जाते हैं ....
300 का तो टिकट ही होता ....
मूंगफली खाने में शर्म आती ,
पिज़ा-बरगर-रौल का ज़माना है ....
रिक्शा का ज़माना नहीं रहा ....
अपनी मोटर-कार है ....
पेट्रोल की कीमत जोड़ दूँ ....
500+500 के 2 पत्ते तो निकल ही जाते हैं ....
साल में एक या दो फिल्म देख लेते हैं ....
कल (1994-2000) ===
मटर 5Rs में एक Kg मिलता था ...
चार पड़ोसी पूरी टोकरी की मोल करते ....
पूरी टोकरी(20Kg-25Kg) हम आपस में बाँट लेते ....
आज 2012 ===
500Rs में 2.5Kg मटर मिलता है ....
500Rs में 1Kg हरा चना मिलता है ....
खाने को जी ललचाता रहता है ....
एक ज़माना था === नमक का
पुड़िया बना खेतों में ही
पहुँच जाती ,दाना छुड़ा खा जाती ,
छिलके पौधों में ही रह जाते ....
कल (1970-1975) ===
पापा ,माँ के लिए 75Rs में साड़ी लाते ,
माँ ख़ुशी से झूम उठती ....
गजब का नूर होता उनके चहरे पर ....
आज (2011-2012) ===
मेरे पति मुझे 750Rs की साड़ी दिला रहे होते ,
मेरी निगाहें 7500Rs की साड़ी पर टिकी होती ....
कल (1969-1979) ===
ढिबरी-मोमबत्ती की रौशनी में ,
हम 5भाई-बहन को खाना खिलाती ....
हम तृप्त होते .... माँ के चेहरे पर नूर होता ....
आज (2011-2012) ===
मैं और मेरा बेटा ,
5star होटल में ,
कैंडिल लाइट डिनर करने जाते हैं ....
ना उसके चेहरे पर तृप्ति होती हैं ,
ना मेरे चेहरे पर नूर होता हैं ....
कल ===
पापा छुट्टियों में गाँव हमें लाया करते थे
टिन के बक्से में कपड़े होते ,
दो ट्रेन बदल स्लीपर में हम आते ....
गाँव के तालाब किनारे === आम-कटहल के बागीचे ....
गोंसार के भुजे अनाज === इंख के रस में पके शक्करकन्द ....
बस मेरे चेहरे पर नूर लाने के लिए काफी होते थे ....
आज ===
छुट्टियों में शिमला - नैनीताल जाती हूँ ....
(बस चले तो स्विजरलैंड चली जाऊं) ....
अपने देश की गर्मी बहुत परेशान करती है ....
ट्रेन नहीं लुभाती ... हवाई सफर चाहिए ....
कल तो ना जाने उन
हालातों का कौन जिम्मेदार था ....
आज इन हालातों की ,
जिम्मेदारी === हिस्सेदारी === भागीदारी ,
मेरी === और मेरी === सिर्फ मेरी .... !!
शैली नवीन है ,लिखी बातें सही है । सच है कि कल की तुलना में आज कितना महंगा है । बहुत बढियाँ ।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
रहने को अब घर ही घर है ... प्रकृति नहीं हमारी , जमीन और ज़मीर मर गई हमारी .... फिर भी , दिल है हिन्दुस्तानी !
ReplyDeleteहोठों को गोल गोल करके जितनी अंग्रेजी बोल लो , अंग्रेज लिबास पहन लो - कहलाओगे हिन्दुस्तानी ...
इसी बात पर वन्दे मातरम
vएक सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteक्या हिसाब किताब रखा है आपनेa
कल और आज का अछा तलपट मिलाया आपने और अंत में इन हालातों की ज़िम्मेदारी स्वयं पर लेना मन को छू गया। दूसरों को दोष देना कितना आसान है?
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
ReplyDeleteऔर बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
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