“दो-चार दिनों में अपार्टमेंट निर्माता से मिलने जाना है। वो बता देगा कि कब फ्लैट हमारे हाथों में सौंपेगा! आपलोग फ्लैट देख भी लीजिएगा और वहीं से हमलोग ननद के घर रात में रुककर, दूसरे दिन वापस आएँगे..!” देवरानी ने कहा।
“तुमलोग चली जाना, मैं नहीं जा सकूँगी।” जेठानी ने कहा।
“क्या आप हमारा घर देखना नहीं चाहेंगी?” देवर ने पूछा।
“देखूँगी न! अवश्य देखूँगी जब आपलोग उस घर में व्यवस्थित हो जाएँगे। आ जाऊँगी किसी दिन आपके घर से मिलने।” भाभी ने कहा।
“इस बार तुम्हारा चलना अलग बात होती…।” जेठानी के पति ने कहा।
“तब क्या अलग बात नहीं थी जब आपने फ्लैट खरीदा था। ख़रीदने के पहले कम से कम दस फ्लैट को जाँच-परखकर, मोल-भाव हुआ होगा। नहीं-नहीं पहले तो योजना बनी होगी; उसके पहले भी रक़म जमा की गयी होगी। किसी एक पड़ाव पर मेरे कानों तक बात पहुँची होती।” जेठानी ने कहा।
“लगभग बीस-पच्चीस साल पुरानी बातों का क्या बदला लेना चाह रही हो?” जेठानी के पति ने पूछा।
“बदला! किस-किस बात का बदला लूँ और क्या उस पल का बदला लिया जा सकता है? आपके संग आपसे मिले सारे रिश्तों ने मेरे सम्मुख केवल अपनी-अपनी माँग रखी। और मैं अधिकार का बिना कोंपल उगाये अपना संपूर्ण अस्तित्व कर्त्तव्यों के पीछे विलीन कर सारी उम्र ख़र्च कर गयी। आपने अपने मित्र और उनकी पत्नी के संग बड़े से फ्रेम में लगी अपनी जो तस्वीर को अलमीरा में डाल रखा है। आप दोनों मित्र एक दिन ही सेवा निवृत हुए थे। मैं अपने बुलावे का देर रात तक प्रतीक्षा करती रही…।” जेठानी ने कहा।
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका ...
ReplyDeleteमानव के स्वभाव का चित्रण करती हुई सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमानवीय स्वभाव की बारीकियों का चित्रण करती सुन्दर रचना सादर
ReplyDeleteचलो कहने का अवसर तो मिला...सुनने वालों को पश्चाताप तो होने से रहा
ReplyDeleteपर मन हल्का होना भी बड़ी बात है ।
सब छोड़ को कोई फर्क नहीं पढ़ना इस सबसे | देश सर्वोपरी | स्त्री नहीं तो कौन जेठानी ?
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