Wednesday, 17 December 2014

काश



काश तुममें
काश्मीर की
चाहत ना होती
माँ गोद छिना
बच्चों का घर जख्मी
भू अंक मिला
तुमने क्या पाया
जेहाद व जे हाल
तमन्ना तुम्हारी थी
=
मैं बीएड में पढ़ रही थी तब 
एक कहने सुनने की कक्षा चल रही थी .... 
पूरे कक्षा में हम तीन चार थे जो थोड़े ज्यादा ही गर्म मिजाज के थे। …। 
जिसमें एक लड़का मुसलमान था। .... उसने सुनाया ......
पत्थर पूजन हरि मिले
तो मैं पूजूं पहाड़
या भली चक्की
पीस खाए संसार
= मैं उबल पड़ी और थोड़े जोर से ही चिल्ला बैठी .....
कंकड़ पत्थर चुन के
मुल्ला दिए मस्जिद बना
ता पर चढ़ के मौला बांग दे
बहरा हुआ क्या खुदा
= बहुत वर्षों तक लगता रहा कि बचकानी हरकत थी .....
सबकी घूरती निगाह हमेशा पीछा करती रही ....
आज तो सच में बहरा लगा ख़ुदा
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कंकड़ की फिरकी

 मुखबिरों को टाँके लगते हैं {स्निचेस गेट स्टिचेस} “कचरा का मीनार सज गया।” “सभी के घरों से इतना-इतना निकलता है, इसलिए तो सागर भरता जा रहा है!...