Monday, 3 February 2025

तुरुप का इक्का


“नेताओं के लिए ऐसे वादे करना आम बात है दीदी। रिकॉर्डेड वादे पूरे न होना भी उनके लिए बेशर्मी की बात नहीं रह गई है। मुकरना और थूक कर चाटना राजनीति का पहला सिद्धांत बनता जा रहा है।”

“राजनीतिक और मतदान पर कागज काला करना ही समय की बर्बादी है : और मतदान करने जाना तो उससे भी बड़ी मूर्खता : बिहार में रहने के कारण मतदान के परिणाम  को बहुत करीब से देखने का मौक़ा मिला है : जंगलराज और साँपनाथ-नागनाथ से वास्ता पड़ता रहा है— फ़िर भी”

“नमस्कार दास बाबू!”

ठण्ड अपना  बोरिया-बिस्तर बाँधने में जुटी थी क्योंकि अरुणाई को तरुणाई मिलने वाली थी! धूप और हार-जीत का आनन्द लेने के लिए दास बाबू अपने मित्र शम्भु के संग बिसात बिछाए अहाते में जमे हुए थे, नमस्कार की आवाज की ओर मुड़े और प्रत्युत्तर में दोनों हाथ जोड़े चिहुँक पड़े! दल-बल के संग आए खद्दरधारी नेताजी को अन्दर आने देने के लिए दरबान को इशारा किया।

“इस इलाक़े के शहंशाह हमारे घर पर कैसे पधारे?” व्यंग्यात्मक मुस्कान दास बाबू के चेहरे पर अपना सिक्का जमाए हुए थी।

“वरदायनी का दिवस था! शुभकामना माँगने चला आया। कुछ दिनों के बाद आपकी उँगली पर लगी स्याही हमारे भाग्य को चमका देगी जैसे आजकल धरा पीताम्बर ओढ़े दमक रही है!” दोनों हाथ जोड़े बोलने वाले के मुख से शहद मिश्रित वाणी निकल रही थी।

“बदले में हमें क्या चाहिए वह बताने के पहले आपको एक उदाहरण देता हूँ- मैं कुछ दिनों पहले विदेश गया था। वहाँ मेरे एक परिचित ने मुझे एक चर्च में में घुमाया। चर्च में मुफ़्त में संस्कारशाला चलाने की अनुमति मिली हुई थी। अधिकांश बच्चे विदेशों में पल रहे हैं। दादा-दादी, नाना-नानी की भी मजबूरी हो गई है विदेशों में रहना। वे लोग अपनी अगली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने के लिए एकत्रित होते हैं।”

“आपको सरकार से क्या उम्मीद है वह स्पष्ट रूप से कहें।” नेताजी  ने पूछा।

“सरकार साहित्यकारों को मुफ्त में एक मंडप दे।” दास बाबू ने माँग रखी।

“विद्यालयों में आठ घंटे की जगह चार-चार घण्टे की कक्षा लगे।” शम्भु ने दूसरी माँग रखी।

“घोषणा पत्र में संकल्‍पना एवं सुसंगतता से दर्ज किया जाएगा!” दल-बल वाली भीड़ से समवेत आवाज गूँजीं।

“मैंने वीडियो बना लिया मालिक!” दरबान की वाणी ने सबको भौचक्का कर दिया।

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तुरुप का इक्का

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