Tuesday 15 April 2014

अनर्थ शब्द



कुआँ नदी दरिया सोख काली घटा बन गए 
मरुस्थल भीगा सको ,घनघनाना हो सार्थक 
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चूल्हा जला कर सेकी जाती थी कभी रोटियाँ 
अब तो गोटी फिट करते हैं जला कर बोटियाँ

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रात सहती 
प्रसव टहकना 
सूर्य ले जन्म ।

टहकना = थोड़ी थोड़ी देर में दर्द उठना 

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हो गई रात 
रहस्य सूर्यग्रास 
गगनांगन ।

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मन उठल्लू
स्वार्थ क्षणिक गांठ
सोच निठल्लू ।

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अनर्थ शब्द 
रिश्ता-कश्ती डूबती 
हद तोड़ती ।

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बने मकान 
समुंद्र पाट देंगे 
कचरा भर ।

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दोस्ती दरिया
प्यार शंख-सीपियाँ
धोखा ना रेंगे ।

## या ##

दोस्ती दरिया
धोखा शंख-सीपियाँ
रिश्ता मलिन ।

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तट छू लेती 
उत्साहित ऊर्मियाँ
पग फेरती ।

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पत्ते चीखते 
ठूंठ नहीं रो पाते 
कुचले जाते ।

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15 comments:

  1. आ. बढ़िया व छोटी कृतियाँ , गहरापन लिए हुए ;) धन्यवाद
    I.A.S.I.H ब्लॉग ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

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  2. बहुत सुन्दर सार्थक रचना ..

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  3. सभी के सभी बहुत बढ़िया लगे |

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  4. बहुत ही बढिया है दीदी!! कहाँ से लाती हैं आप ये शब्द!!

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!

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  6. बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में

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  7. बहुत सुन्दर...

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  8. गहरी बातें बड़ी सहजता से कह दी
    बहुत रचना सुन्दर-----

    आग्रह है----
    और एक दिन

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  9. एक से बढ़कर एक ! :)

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आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
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