“आज तो तुम बहुत खुश होगी... माँ-बाबूजी गाँव लौट रहे हैं!
“पर क्यों”?
“गुनाह करके मासूमियत से पूछ रही.. क्यों”?
“गुनाह”?
“हाँ! आज तुमने भोलू के गाल पर चाँटा जड़ दिया क्यों”?
“भोलू मेरा भी बेटा है... उसका भला-बुरा देखना मेरा काम है... वह बतमीजी कर रहा था...”
“तो क्या हुआ? हमारा इकलौता बेटा है... माँ-बाबूजी तुम्हारे इस चाँटे को अपने गाल पर महसूस किया है... बाबूजी का कहना है, बहू के ऐसे चाँटे खाने से अच्छा है हमलोग गाँव में रहें... तुम भी शायद यही चाहती हो न”
“क्या बात कर रहे हैं... मैं ऐसा क्यों चाहूँगी”?
“ताकि तुमको उनकी सेवा न करनी पड़े...”
“यह आपकी गलत सोच है... कल यदि गोलू बिगड़ गया तो सारा दोष मुझ पर आ जायेगा...
(चोर वाली कहानी याद है न जो जेल में अपनी माँ से मिलने की इच्छा रखता है) ...
बन गया बेटा लायक तो सारा श्रेय आपलोग ले जायेंगे... मुझे श्रेय की नहीं, बेटे के भविष्य की चिंता है...
इकलौते बेटों का भविष्य मैंने अन्य कई घरों में देखा है...”
“तो...!”
“देखिये! आप माँ-बाबूजी को समझाइए... मैं आखिर उसकी माँ हूँ...”
मैं उसकी माँ हूँ... यह संवाद भोलू की दादी के कानों में पड़ा तो उन्हें अतीत के दिन याद हो आये जब वह भोलू के पिता के संग अपने अन्य बच्चों की गलतियों पर उनको एक चाँटा तो क्या डंडो से पीटने में गुरेज नहीं करती थी... वह सामने आयी और बोली “यह माँ है... इसकी यही भूमिका है... हमलोग दादा-दादी हैं हमलोगों की अपनी भूमिका है... जब बहू भी दादी बनेगी तो इसे भी ऐसे ही बुरा लगेगा जैसे हमलोगों को लगा है...
” इसके बाद सास ने बहू को गले से लगा लिया!
काश अंत सच होता
अन्तर्मन की भवनाओं को बखूबी लिखा गया है ।
ReplyDeleteवास्तव में सबकी अपनी भूमिका होती है ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 09 मई 2017 को लिंक की गई है............................... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा.... धन्यवाद!
ReplyDeleteढ़ेरों आशीष के संग शुक्रिया छोटी बहना
Deleteआदरणीय ,शिक्षाप्रद रचना ,सुन्दर ! आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteसुन्दर ।
ReplyDeleteकम लफ़्ज़ों में गहरे अहसास
ReplyDeleteबहुत ही उत्तम
ReplyDelete