Wednesday 21 November 2018

"घटाटोप खामोशी"


दरवाजे की घँटी बजी ,मेरे पति दरवाजा खोल आगंतुक को ड्राइंगरूम में बैठा ही रहे थे कि मैं भी वहाँ पहुँच गई... दो मेहमान थे जिनमें एक से मैं परिचित... मैं वहाँ से हटने वाली ही थी कि अपरिचित ने कहा, "मुझे पहचानी आँटी?" और मेरे नजदीक आकर चरण-स्पर्श कर लिया.. आदतन आशीष देकर हट जाना चाहती थी... लेकिन बैठ गई...
"यह वही हैं! जो तीन साल पहले, जब गिरने से तुम्हारे पैर में चोट लगी थी तो सड़क से उठाकर घर तक अपने गाड़ी से पहुँचा गए थे। तबादला हो-होकर कई ब्रांच सैरकर वापस आ गए!" मेरे पति की आवाज थी।
"ये! ऐसा कैसे हो सकता है?"मैं स्तब्ध थी
"आप आँटी मुझे भूल गईं क्या?" वह भी आश्चर्य चकित था।
”आपकी आँटी भूली नहीं हैं... तीन साल से कर्ज उतार रही हैं... मेरा, अपना खाता तो खुलवाई ही उस बैंक में जिसमें आपलोग काम करते हैं! कई स्कीम में भी पैसा डलवाती रहती हैं... आपके साथ आये इन महोदय को वो समझ रही हैं जो इन्हें यकीन दिला चुके हैं कि ये ही सड़क से उठाकर घर पहुँचाये थे...।"
पिन भी गिरता तो शोर मचता......

2 comments:

  1. ओहह...ऐसा भी होता है...लोग मौके का फायदा उठा लेते है..आपकी रचनाएँ ज़िंदगी का हर रंग दिखला जाती हैं दी।

    ReplyDelete
  2. वास्तविकता को दर्शाती रचना।

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

अनुभव के क्षण : हाइकु —

मंजिल ग्रुप साहित्यिक मंच {म ग स म -गैर सरकारी संगठन /अन्तरराष्ट्रीय संस्था के} द्वारा आयोजित अखिल भारतीय ग्रामीण साहित्य महोत्सव (५ मार्च स...