जितने भी ब्लोगर से मेरा परिचय अब तक हुआ है …. सभी बहुत ही अच्छे सोच के साथ अपने कलम से जादू (वशीकरण) फैला इतने वशीभूत करते हैं कि 100-150 कमेंट्स आसानी से आजाते हैं .... ऐसा क्यों न हो ..... ?? सभी का एक गौरवशाली इतिहास(अतीत) है .... यानी .... सभी बचपन से "महान लेखक" या "महान कवि" के साए में पले-बढे हैं या जिनके पूर्वज भी लेखक-कवि थे या उनमें ही इतनी काबलियत ईश्वर द्वारा प्रदान थी कि वे कुछ भी रच सकें.... ऐसे में मेरा यहाँ होना लगता हैं ..... जैसे कोई बच्चा चाँद पकड़ने कि कोशिश कर रहा हो .... ? मेरे कमेंट्स पर सब हँसते होंगें न .... अपने तो कुछ आता-जाता नहीं .... चली हैं , हमलोगों पर कमेंट्स करने .... ?? (वैसे .... मैं उन्ही लोगों के लिखे पर कमेंट्स करती हूँ .... जो मुझे अनुमति देते हैं …. या fb पर शेयर में अनुमति की जरुरत नहीं होती न....) सच में मुझे नहीं लिखने आता ..... अगर आता होता ..... तो आज बिहार या हो सकता है बिहार के बाहर भी होता होगा ....10-11-12 अप्रैल के दैनिक जागरण का समाचार है .... माँ - बेटी को नंगा (कारण जो रहा हो)कर पुरे गाँव में घुमाया गया .... डायन (शक ही होगा .... आँखों से देखे होते तो मार न डालते)होने के कारण मैला पिलाया गया , सर मुंडवा कर ,नंगा कर पुरे गाँव में घुमाया गया .... माँ के सामने.... पति के सामने.... सामूहिक बलात्कार .... पर ऐसा लिखती की नितीश सरकार और मनमोहन सरकार की नींदें उड़ जाती और वे विवश हो जाते .....
कानून बनाने पर ....
ऐसा करने वालों पर नो चार्ज-शीट ..... नो मुकदमा ..... सीधे उनकी बेरहमी से क़त्ल ताकि दूसरा सोचने के पहले काँपे ....
अनुरोध है ..... !!
आप सभी तो लिखना जानते है …. आप लिखये न …. आपकी आत्मा नहीं रोती …. ??
या ....
आप सोचते हैं .... इसके पहले तो "नारी सशक्तिकरण" ..... "नारी उत्थान" पर इतना कुछ लिखा जा चूका है .... किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती ..... :(:(
अब क्या होगा.... ??
बोलनेवालों की ज़ुबान खींच ली जाती है
ReplyDeletesaarthak post.
ReplyDeleteसार्थक सुंदर आलेख ...बेहतरीन पोस्ट .
ReplyDeleteविभा जी,आपका फालोवर बन गया हूँ आपभी बने मुझे खुशी होगी,....
बहुत दिनोसे मेरे पोस्ट में नही आई आइये स्वागत है,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
आप से सहमत हूँ आंटी!
ReplyDeleteसादर
कल 14/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
आदरणीय विभा जी
ReplyDeleteनमस्कार !!!
.....बिलकुल आप से सहमत हूँ
कौन लिखेगा ... आपको सच मे लगता है किसी के पास इतना समय है ... इतना साहस है ... माफ कीजियेगा मुझे ऐसा नहीं लगता !
ReplyDeleteबिलकुल सहमत हूँ विभा जी..सार्थक लेख..
ReplyDeleteitni himmat kahan se layen... ..likhna utna kathin nahi jitna ki usmar amal hona....
ReplyDeletebahut achhi jaagrukta bhari prastuti..
सहमति का ठप्पा इधर से भी
ReplyDeleteविभा जी,
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट में कई सारी बातें हैं.
पहली बात तो शायद कुछ लोग होंगे..जिनेक पूर्वज लेखक-कवि रहे हैं पर अधिकांशतः ऐसा नहीं है..अपने परिवार में क्या खानदान में भी अकेले वही लिखने वाले हैं...इसलिए आप बिलकुल संकोच मत कीजिए...जो विषय आपका ध्यान आकृष्ट करता हो...जो घटना दिल दुखाती हो...उसपर खुल कर लिखें..सामान विचार वाले अपने विचार भी रखेंगे आपके लेखन पर...लम्बा विमर्श भी हो सकता है..कई बातें निकल कर आ आ सकती हैं उसमे
और ये ख्याल तो दिल से निकाल दें कि 100-150 कमेंट्स वाले बहुत अच्छा लिखते हैं...कमेंट्स सिर्फ आदान-प्रदान से मिलते हैं...आप एक हफ्ते तक ब्लॉग पर घूम-घूम कर सब जगह टिप्पणीयाँ करें सौ टिप्पणी की गारंटी :)
Rashmi Ravija ki baato se sau fisadi sahmat... agar di aapko lagta hai koi baat aapko kachot rahi hai, pareshan kar rahi hai.. aur aapke pass shabd hai... to kam se kam usko apne blog pe daalkar khud ko to santusht kar hi sakti hain... aur isme to koi sakk nahi comment pana post ka hit ho jana hai...!!
Deleteझूठी कहीं की :))
Deleteझूठी क्यों
Deleteक़ानून में बदलाव इतनी आसानि से कहाँ आते हैं देश में ... ऐसे शर्मनाक किस्से पढ़ के शर्म आती है अपने आप पे ...
ReplyDeleteविभा , बड़ा भाई माना है ,तो स्नेह देना तो मेरा बनता है न ??
ReplyDeleteयहाँ ,हमारे सीखने को बहुत कुछ है ...हमारे पास दूसरों के लिए स्नेह,प्यार शुभकामनाएँ और आशीर्वाद है ,और कुछ अपने एहसास ...वोही बहुत हैं |आप की सोचे सुंदर एहसासों से सजी हैं |
उपर रश्मी जी ठीक कह रहीं हैं......
खुश रहो और स्वस्थ रहो!
स्नेह!
विभा जी परिस्थितियाँ सचमुच भयावह करने बाली हैं.
ReplyDeleteसार्थक आलेख. बधाई.
आज परिस्थितियां सच में शोचनीय हैं, लेकिन केवल कानून बनाने से कुछ नहीं होगा. जरूरत है हमारी सोच में बदलाव और परिस्थिति का सामना करने की.
ReplyDeleterashmi di ki baat se poori tarah sahmat hun....tippaniyon ki sankhya ye nahin nirdharit karti ki lekhan achcha hai ya nahin..kai blogger bahut achcha likhte hai par ve dusro ke blog ko samay nahi de pate isliye unhe tippaniyan nahi milti...aur mahan kaviyon ke saye me palne ka sobhagya bhi har kisi ke pas nahin .. aapne bahut sarthak vishay sujaye ..jinpar lekhan hona hi chahiye..lekhak ka to kartavya hi ye hai ki vo bina aalochnao ki parbah kiya satya ko udgatit karen.....
ReplyDeleteकृपया मेरी १५० वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें , अपनी राय दें , आभारी होऊंगा .
Deleteक्या क़ानून बनाने भर से किसी समस्य का सम्पूर्ण निदान किया जा सकता है? शायद नहीं. जरूरत है है सोच को बदलने की जो ऐसी घटनाओं के बाद भी सुकून से है.
ReplyDeleteविभा जी! जय राम जी की ! आप ऐसा क्यों सोचती हैं? झरने की कलकल पर आपकी टिप्पणी का टेक्स्चर देख कर ही इधर आया हूँ। एक कमाल की बात है कि मैं जिन्हें भी पसन्द कर रहा हूँ बाद में पता चलता हैकि उनमें से अधिकाँश लोग बिहारी हैं। जानबूझकर किसी बिहारी का फ़ॉलोअर नहीं बना मैं ...बनने के बाद पता चलता हैकि सामने वाला भी बिहारी है। यह संयोग ही कहा जायेगा, किंतु मैं इसका यह अर्थ लगाने के लिये बाध्य हुआ हूँ कि बिहार में प्रतिभाओं का भण्डार है। गर्व होता है मुझे।
ReplyDeleteअब मुद्दे की बात करूँ तो देश में न्याय व्यवस्था बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। सामाजिक ढाँचा इतना कमजोर हैकि लोग ऐसी बातों के विरुद्ध उठकर खड़े होने का साहस नहीं कर पाते। तथापि कलम के सिपाही इन विषयों पर भी अपनी दृष्टि रखते ही हैं।
ReplyDeleteऔर अगली बात यह कि अगर आप भोजपुरी या मैथिली में अपने लेख लिखें तो अच्छा होगा
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteदीदी
ReplyDeleteशुभ संध्या
क्या बात है ....... सोचने को विवश करता लेख .......
ReplyDeleteआपने बहुत खुब लिख हैँ।
ReplyDeleteवास्ते मेँ आपने सच्चाई से अरूवरु कराया
यहाँ आकर अपनी राय देकर मेरा होसला बढाये