Tuesday 12 April 2016

गाँठ सुलझा रफ़ू


प्रेम का धागा नहीं टूटता .....
जब तक उसमें शक का दीमक
या
अविश्वास का घुन ना जुड़ता .....
खोखला होगा तभी तो टूटेगा .....

मैं जब कढ़ाई या बुनाई करती हूँ ...... तो जब गाँठ डालना होता है ..... 
गाँठ डालना होगा न ... क्योंकि लम्बे धागे उलझते हैं 
और उलझाव से धुनते धुनते कमजोर भी होने लगते हैं ....... 
और ऊन का 25 या 50 ग्राम का गोला होता है ..... 
400 से 600 ग्राम का गोला तो मिलता नहीं ना .....




              ---- जहाँ खत्म हुआ सिरा और शुरू होने वाला सिरा के पास
 थोड़ा थोड़ा उधेड़ती हूँ फिर दोनों के दो दो छोर हो चार छोर हो जाते हैं ....  
दो दो छोर सामने से मिला बाट लेती हूँ ...... 
फिर गाँठ का पता नहीं चलता है ...... 

क्या रिश्ते के गाँठ को यूँ नहीं छुपाया जा सकता है ..... 
कुछ कुछ छोर तक उधेड़ डालो न मन को .....
हर गाँठ को सुलझाया जा सकता है
रफ़ू से चलती है जिंदगी

7 comments:

  1. आभारी हूँ छोटी बहना .... आपको पसंद आने का मतलब सही लिखा गया है .... बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2312 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    1. आभारी हूँ _/\_
      अपने लिखे को चर्चा के लिए चयनित देख संतोष होता है
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  3. बहुत अच्छी रचना है

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  4. अति सुंदर रचना आदरणीया गहरा मर्म छुपा है आपकी रचना में

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