घर मेरा है
चलेगी मर्जी मेरी
स्व का सोचना
छी खुदगर्जी तेरी
पुरातन ख्याल
वजूद पर सवाल
दिल को जलाता
सकूं मिटा जाता
उधेड़े पत्ती पत्ती
ज्ञान अनावर्त्ती
सत झंझकोरता
ज्ञान हिलोरता
बिना स्व बिखेरे
धन्यवाद बोल तेरे
महक आती
नर्गिसी फूलों
चहक जाती
धमक शूलों
01. "क्या दूसरी शादी कर लेने के बारे में नहीं सोच रही हो?" सुई भी गिरती तो शोर गूँज जाता। जैसे आग लगने पर अलार्म बज जाता है। पहली...
वाह! सुंदर रचना ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.11.2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2529 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDelete