रेत की आँधी–
दर्जी हट्टी में खड़े
नंगे पुतले।
हाँ! बहुत अच्छा होने के पहले कुछ बुरा होता है।
आवेग में सिक्के का दूसरा रुख नहीं देख पाते हैं।
दर्जी हट्टी में खड़े
नंगे पुतले।
बर्फ गलन–
छज्जे नीड़ से उड़े
फाख्ता के बच्चे।
समझ लेना प्रत्युत्तर निष्पादन का सुरा होता है।हाँ! बहुत अच्छा होने के पहले कुछ बुरा होता है।
आवेग में सिक्के का दूसरा रुख नहीं देख पाते हैं।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग
Deleteहार्दिक आभार छोटी बहना..
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर हाइकु दी
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी रचना की पंक्ति-
"रेत की आँधी"
हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुन्दर हायकू...
ReplyDeleteवाह!!!
वाह ! बहुत ही खूबसूरत हाइकू
ReplyDeleteव्यंजनापूर्ण.
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteलाजवाब हाइकु दी ! हमेशा की तरह अति सुन्दर ।
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