"सुनों न प्रकृति के सभी पशु-पक्षी, कीट-कीटाणु पेड़-पौधे की प्रवृति एक सी होती हैं, पूर्णिमा को लहरें भी समझ में आ जाती हैं... किन्तु/परन्तु/लेकिन.."
"बोलने में अटकना क्यों?"
"मन्वंशी की प्रवृति की प्रकृति उत्थान-पतन के चरम पर क्यों होती है.. अहम या यों कहें एटीट्यूड...?"
"अगर अहम को ऐपटाइट के लिए छौंक में प्रयोग करना होता... अगर एटीट्यूड को लॉकर में रखा जाता तो... ?"
"मान लो A/1+t/20+t/20+i-/9+t/20+u/21+d/4+e/5 = Attitude/100 क्यों ना हो मतवाला?"
"और अहम?"
चाहत कहने वाले चाह से मिला को भूल जाते हैं।
मन्नत कहने वाले मांगने के सिला को भूल जाते हैं।
क्या फर्क नहीं पड़ता कि कौन किसके खिलाफ है,
मुदिता कहने वाले माया से गिला को भूल जाते हैं।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeletehttps://charchamanch.blogspot.com
धन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteक्या बात...
अहम या एटीट्यूड !!!
बहुत खूब
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका
Deleteवाह बहुत सुंदर।
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