कई महीनों से प्रतिदिन इसी रास्ते से गुजरती हो।
एक ही रास्ते के पेड़-पौधे एक ही क्यारी!
रोज ऐसा क्या देख पाती हो?
जो तुम्हारे चेहरे का हावभाव बदलता रहता है।
कभी शिशु सी मुस्कान खिलती है तो...
कभी वात्सल्य उमड़ता है।
क्या तुम्हें एहसास नहीं होता?
नये किसलय निकले दिखलाई नहीं देते...
पीलापन! न ना पीलापन कहूँ तो
पीलिया का ख्याल आता है
उफ्फ्! वायरल शर्त।
वृद्धि हुई स्तरों बिलीरुबिन
क्षतिग्रस्त जिगर गर्त
किसी रोग को याद नहीं करना...
तुमलोग क्या कहते हो येल्लोइश?
अच्छा! कुछ अंग्रेजी के शब्द तुम्हें भी जमने लगे हैं
ना! ना, ऐसा बिलकुल नहीं है
देखो न एक समान जमीन, धूप, हवा, पानी मिलने पर
कोई किसलय होड़ में आगे है... क्या इसे नहीं पता
ज्यादा ऊँचाई झुकने पर मजबूर करती है
ओह्ह तुम हमेशा 'लीनिंग टावर ऑफ़ पीसा' याद रखती हो
अरे क्या बात है! इसे इस तरह लो न
पड़ोस के बच्चे का अच्छा ग्रोथ देखकर दूसरे कुढ़ रहे
ऊँचे को देखने के लिए गर्दन ऊँची जो करनी पड़ती है
जब से ऊँचे दर की महत्ता बढ़ी
तब से ऊँचे अहम की नशा चढ़ी
समय ने लगाम खिंची और...
हम प्रकृति के करीब आये...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 04 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteइस तरह की विशेष अभिव्यक्ति, एक उत्कंठा पैदा कर जाती है।
ReplyDelete"क्या तुम्हें एहसास नहीं होता?
नये किसलय निकले दिखलाई नहीं देते...
पीलापन! न ना पीलापन कहूँ तो
पीलिया का ख्याल आता है
उफ्फ्! वायरल शर्त।"
इतनी सुन्दर कल्पना, पीलेपन के साथ, असहज रूप से एक सशक्त अभिव्यक्ति है।
नमन व बधाई आदरणीया।
जब से ऊँचे दर की महत्ता बढ़ी
ReplyDeleteतब से ऊँचे अहम की नशा चढ़ी
समय ने लगाम खिंची और...
हम प्रकृति के करीब आये... बहुत सुंदर !!!
वाह!बेहतरीन !
ReplyDeleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteप्रकृति का नशा सबसे सुकुनकारी है
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति