कोई दिन ऐसा नहीं जाता है ,जब प्रेमचन्द के सृजन के पात्रों से सीखना ना होता हो.. क्या बिगाड़ के डर से सच ना कहा जाए.. संयुक्त परिवार की बड़ी बहू का किरदार निभाना हो या रिश्ता बचाना हो.. जो जीया हो वही जानता है... आज़ादी के लिए अभाव में जीना चयन करना बड़ा व्यक्तित्व बनाया... धन से धनी होना कितना आसान है यह तो सभी को पता है ...
31 जुलाई 2020 प्रेम चंद की 140 वीं जयंती पर - ''लोग अंतिम समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद दिलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।" - मुँशी प्रेमचन्द की पंक्तियों से मैं सदा बेहद प्रभावित रही ,स्वीकार करती हूँ।
संयुक्त परिवारों में बड़ा कुनबा होता था...। सभी तरह के लोग , कोई ज्यादा पढ़ा-लिखा बड़ा अफसर तो कोई कम पढ़ा लिखा साधारण कर्मचारी तो कोई खेतिहर ... सभी एक स्तर से जीवन-यापन करते थे..। प्रत्येक दिन होली-दशहरा-दीवाली सा रौनक लगा रहता। किसी पर किसी तरह की आपदा आयी तो मिल-बाँटकर दूर कर ली जाती थी।
संयुक्त परिवार की सरंचना उत्तम है। परन्तु एक दुसरे को समझने वाले लोग हों। अपने दिमाग में उपजे विकारों को परिवार के विकारी लोगों से टकराने नहीं दिया जाना चाहिए। वरना संयुक्त परिवार का आँगन दमघोंटू होने लगता है और कई कोने में चूल्हे जलने में देर नहीं लगती है। ऐसी परिस्थिति में संयुक्त परिवार का बिखर जाना और एकल परिवार में बदलना तथा एकल में एक का विस्तार पा जाना आसान हो जाता है।
जरा सी बात पर कलह हो जाना, बात का बतंगड़ बन जाना और फिर आपसी समझ-बूझ से बिगड़ती बात को संभाल भी लिया जाता होगा। 'बड़े घर की बेटी’ कहानी में प्रेमचंद जी ने भारतीय संयुक्त परिवारों के मनोविज्ञान को बड़ी बारीकी से दिखलाने का प्रयत्न किया है।
आदर्शोन्मुख-यथार्थवाद प्रेम चंद के साहित्य की मुख्य विशेषता रही है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में १९१८ से १९३६ तक के कालखंड को 'प्रेमचंद युग' कहा जाता है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है। प्रत्येक कहानी अपने पीछे एक संदेश और उद्देश्य छोड़ जाती है। महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद्र को इसमें महारत हासिल रहा। जहाँ उन्होंने गरीबों के दुख-दर्द को कथानक बनाया, वहीं उच्च वर्ग का सामाजिक परिवेश भी उनसे अछूता नहीं रह गया। छोटी सी कहानी में आर्थिक, पारिवारिक और संस्कारिक मूल्यों का उन्होंने जो समावेश स्थापित किया है वह हमारे देश व समाज की संस्कृति की एक सशक्त छाप हमारे सामने लाती है।
'प्रेम चंद का लेखन साहित्यकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के लेखन से प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है...,' कहना अद्धभुत तथा समयोचित है। वैसे चिंतनीय भी है...।
उन्होंने मनुष्य के सभी वर्गों से लेकर पशु-पक्षियों तक को अपनी कहानियों में मुख्य-पात्र बनाया है। उनकी कहानियों में किसानों , मजदूरों , स्त्रियों , दलितों , आदि की समस्याएं गंभीरता से चित्रांकित हुई हैं। समाज-सुधार , देशप्रेम , स्वाधीनता-संग्राम आदि से संबंधित कहानियाँ लिखी हैं।
प्रेमचन्द का कथा-साहित्य जितना तब के समकालीन परिस्थितियों पर खरा उतरता होगा , उतना क्या उससे थोड़ा अधिक ही अब-आज के काल में सार्थक है...।
इस कहानी के द्वारा लेखक ने अंत भला तो सब भला वाला आदर्श स्थापित किया है। उन्होंने आनंदी के माध्यम से एक सभ्य, सुसंस्कृत, रूपवती, गुणवती बड़े घर की बेटी के संस्कारों को दिखाया है। जिसने अपनी समझ-बूझ और बुद्धिमत्ता से घर को टूटने से बचाया और दो भाइयों को एक दूसरे से अलग होने से बचाया का उदाहरण है।
'बड़े घर की बेटी' जैसी और कुछ अन्य कमजोर कहानियाँ लिखने वाले यानी कुछ लोगों के नज़र में 'बड़े घर की बेटी' शीर्षक वाली कहानी लेखन में भले कमजोर लगी हो लेकिन मुझ जैसी कई कन्याओं को संयुक्त परिवार को सुदृढ़ करने के लिए मजबूत आधार दिया।
31 जुलाई 2020 प्रेम चंद की 140 वीं जयंती पर - ''लोग अंतिम समय में ईश्वर को याद करते हैं मुझे भी याद दिलाई जाती है। पर मुझे अभी तक ईश्वर को कष्ट देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।" - मुँशी प्रेमचन्द की पंक्तियों से मैं सदा बेहद प्रभावित रही ,स्वीकार करती हूँ।
संयुक्त परिवारों में बड़ा कुनबा होता था...। सभी तरह के लोग , कोई ज्यादा पढ़ा-लिखा बड़ा अफसर तो कोई कम पढ़ा लिखा साधारण कर्मचारी तो कोई खेतिहर ... सभी एक स्तर से जीवन-यापन करते थे..। प्रत्येक दिन होली-दशहरा-दीवाली सा रौनक लगा रहता। किसी पर किसी तरह की आपदा आयी तो मिल-बाँटकर दूर कर ली जाती थी।
संयुक्त परिवार की सरंचना उत्तम है। परन्तु एक दुसरे को समझने वाले लोग हों। अपने दिमाग में उपजे विकारों को परिवार के विकारी लोगों से टकराने नहीं दिया जाना चाहिए। वरना संयुक्त परिवार का आँगन दमघोंटू होने लगता है और कई कोने में चूल्हे जलने में देर नहीं लगती है। ऐसी परिस्थिति में संयुक्त परिवार का बिखर जाना और एकल परिवार में बदलना तथा एकल में एक का विस्तार पा जाना आसान हो जाता है।
जरा सी बात पर कलह हो जाना, बात का बतंगड़ बन जाना और फिर आपसी समझ-बूझ से बिगड़ती बात को संभाल भी लिया जाता होगा। 'बड़े घर की बेटी’ कहानी में प्रेमचंद जी ने भारतीय संयुक्त परिवारों के मनोविज्ञान को बड़ी बारीकी से दिखलाने का प्रयत्न किया है।
आदर्शोन्मुख-यथार्थवाद प्रेम चंद के साहित्य की मुख्य विशेषता रही है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में १९१८ से १९३६ तक के कालखंड को 'प्रेमचंद युग' कहा जाता है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है। प्रत्येक कहानी अपने पीछे एक संदेश और उद्देश्य छोड़ जाती है। महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद्र को इसमें महारत हासिल रहा। जहाँ उन्होंने गरीबों के दुख-दर्द को कथानक बनाया, वहीं उच्च वर्ग का सामाजिक परिवेश भी उनसे अछूता नहीं रह गया। छोटी सी कहानी में आर्थिक, पारिवारिक और संस्कारिक मूल्यों का उन्होंने जो समावेश स्थापित किया है वह हमारे देश व समाज की संस्कृति की एक सशक्त छाप हमारे सामने लाती है।
'प्रेम चंद का लेखन साहित्यकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के लेखन से प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है...,' कहना अद्धभुत तथा समयोचित है। वैसे चिंतनीय भी है...।
उन्होंने मनुष्य के सभी वर्गों से लेकर पशु-पक्षियों तक को अपनी कहानियों में मुख्य-पात्र बनाया है। उनकी कहानियों में किसानों , मजदूरों , स्त्रियों , दलितों , आदि की समस्याएं गंभीरता से चित्रांकित हुई हैं। समाज-सुधार , देशप्रेम , स्वाधीनता-संग्राम आदि से संबंधित कहानियाँ लिखी हैं।
प्रेमचन्द का कथा-साहित्य जितना तब के समकालीन परिस्थितियों पर खरा उतरता होगा , उतना क्या उससे थोड़ा अधिक ही अब-आज के काल में सार्थक है...।
इस कहानी के द्वारा लेखक ने अंत भला तो सब भला वाला आदर्श स्थापित किया है। उन्होंने आनंदी के माध्यम से एक सभ्य, सुसंस्कृत, रूपवती, गुणवती बड़े घर की बेटी के संस्कारों को दिखाया है। जिसने अपनी समझ-बूझ और बुद्धिमत्ता से घर को टूटने से बचाया और दो भाइयों को एक दूसरे से अलग होने से बचाया का उदाहरण है।
'बड़े घर की बेटी' जैसी और कुछ अन्य कमजोर कहानियाँ लिखने वाले यानी कुछ लोगों के नज़र में 'बड़े घर की बेटी' शीर्षक वाली कहानी लेखन में भले कमजोर लगी हो लेकिन मुझ जैसी कई कन्याओं को संयुक्त परिवार को सुदृढ़ करने के लिए मजबूत आधार दिया।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 31 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Delete'बड़े घर की बेटी' पर आपके विचार सही हैं । जो इस रचना को स्तरीय नहीं मानते, निश्चय ही वे इसके मर्म को नहीं समझ सके । कथा में जो 'बड़े घर की बेटी' बताई गई है उसके संस्कार भी बड़े हैं, हृदय भी विशाल है एवं समग्र पारिवारिक सुख के समक्ष अपने अहं के त्याग का भाव तो सर्वोच्च है । कथा के अंत में अपने आचरण से वह सिद्ध कर देती है कि वह वास्तव में ही बड़े घर की बेटी है, अपने माता-पिता का नाम उज्ज्वल करने वाले घर की बेटी ।
ReplyDeleteसुन्दर और सराहनीय बेहतरीन प्रस्तुति
ReplyDeleteसमझने की बात है।
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