Friday, 10 July 2020

परबचन गीत




नोखी रीत समझ में बात है आयी,
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी।

पहले थाम ऊँगली जिनके मंजिल पाया,
वही हाथ बाद में उनके गर्दन पे आया,
चीखते फिर छल की अंधेरी रात है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी ।।

उन्हें जो मिला मुखौटा चढ़ाए निभाया
कहाँ दिखा सौ मन विकार स्व के हिया।
शिकायतें सुनों उनके हिस्से मात है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी।

भरम में जीने वालों को मोथा बनाया
मगरुरी कफ़न याद नहीं रख किया 
बेपरवाही की नींद में मौत है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी
अनोखी रीत समझ में बात है आयी।


7 comments:

  1. रीत अनोखी आत्ममुग्धता,
    अभिमानी की यही प्रबुद्धता।
    ----
    धारदार,सटीक प्रहार
    बहुत सुंदर सृजन दी।
    प्रणाम।

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    1. अभिमानी की यही प्रबुद्धता
      बहुत सुंदर

      सस्नेहाशीष शुभकामनाओं के संग छूटकी

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 10 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना

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  3. शिकायतें उनके हिस्से मात है आयी
    आत्ममुग्धता.....
    वाह!!
    शानदार धारदार सृजन।
    और साथ में खुश रहने के मूलमंत्र
    बहुत ही सुन्दर।

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  4. बहुत खुबसुरत रचनाए है आपकी
    हाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पोस्ट में आए और मुझे सही दिशा निर्देश दे

    https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
    धन्यवाद

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