अनोखी रीत समझ में बात है आयी,
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी।
पहले थाम ऊँगली जिनके मंजिल पाया,
वही हाथ बाद में उनके गर्दन पे आया,
चीखते फिर छल की अंधेरी रात है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी ।।
उन्हें जो मिला मुखौटा चढ़ाए निभाया
कहाँ दिखा सौ मन विकार स्व के हिया।
शिकायतें सुनों उनके हिस्से मात है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी।
भरम में जीने वालों को मोथा बनाया
मगरुरी कफ़न याद नहीं रख किया
बेपरवाही की नींद में मौत है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी
अनोखी रीत समझ में बात है आयी।
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी।
पहले थाम ऊँगली जिनके मंजिल पाया,
वही हाथ बाद में उनके गर्दन पे आया,
चीखते फिर छल की अंधेरी रात है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी ।।
उन्हें जो मिला मुखौटा चढ़ाए निभाया
कहाँ दिखा सौ मन विकार स्व के हिया।
शिकायतें सुनों उनके हिस्से मात है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी।
भरम में जीने वालों को मोथा बनाया
मगरुरी कफ़न याद नहीं रख किया
बेपरवाही की नींद में मौत है आयी
आत्ममुग्धता समझ में घात है आयी
अनोखी रीत समझ में बात है आयी।
रीत अनोखी आत्ममुग्धता,
ReplyDeleteअभिमानी की यही प्रबुद्धता।
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धारदार,सटीक प्रहार
बहुत सुंदर सृजन दी।
प्रणाम।
अभिमानी की यही प्रबुद्धता
Deleteबहुत सुंदर
सस्नेहाशीष शुभकामनाओं के संग छूटकी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 10 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार छोटी बहना
Deleteशिकायतें उनके हिस्से मात है आयी
ReplyDeleteआत्ममुग्धता.....
वाह!!
शानदार धारदार सृजन।
और साथ में खुश रहने के मूलमंत्र
बहुत ही सुन्दर।
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खुबसुरत रचनाए है आपकी
ReplyDeleteहाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पोस्ट में आए और मुझे सही दिशा निर्देश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
धन्यवाद