"ऐसी परिस्थिति में हमारा यहाँ रहना ज्यादा उचित है श्रीमती जी। बेहद नाजुक और भयावह परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है !" एकांश के पिता एकनाथ ने कहा।
अचानक से आर्थिक मंदी का सामना करने वाली अनेकों कम्पनियों ने अपने कर्मचारियों की छंटनी कर दिया। एकांश की नौकरी भी उसी क्रम में छूट गई। एक तरफ विदेशी जमीं , मकान का लोन तो दूसरी तरफ़ उसी का आर्थिक सम्बल लिए बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी एकता और 5 साल की बेटी ईशा थी। मल्टीनेशनल कम्पनी में उच्च पदासीन एकांश अन्य कई कम्पनियों में साक्षात्कार दे रहा था। लेकिन सफलता हासिल नहीं होने के कारण उसमें चिडचिडापन आता जा रहा था।
एकांश पर आर्थिक भार कम करने के लिए उसकी माँ ऐश अपने पति से देश वापस लौटने की चर्चा छेड़ती है...,-"हम घर जाकर गाँव की जमीन बेचकर एकांश की मदद कर सकते हैं।"
"जमीन-गहना बेचकर मदद करना आखिरी आधार होगा। यहाँ एक महाविद्यालय में मुझे हिन्दी प्रख्याता की नौकरी मिल गई है।" एकनाथ ने कहा।
"आपका कोचिंग बंद करवाकर आराम करने के लिए मैं अपने साथ लेकर आया था। मुझे आत्मग्लानी हो रही है।" एकांश ने कहा।
"हो सकता है कुछ महीने या या एक-दो साल मुझे यह नौकरी करनी पड़े जैसे तुम्हें तुम्हारी पसंद की नौकरी लग जायेगी ,मैं पुन: आराम करने लग जाऊँगा। असमय लाठी का सहारा लेना वक्त को बर्दाश्त नहीं हो पाया..।" एकनाथ ने ठहाका लगाते हुए कहा।
"सुनो जी! मैं भी घर में बने खाने का ऑर्डर लेना चाहती हूँ। वर्षो पहले तुमने मुझसे वादा लिया था अपनी कसम देकर कि मैं कभी नहीं कमाऊँगी।" ऐश ने कहा।
"आकस्मिक युद्ध में तुम भी योद्धा होने का सुख उठा ही लो! तुम्हें अपनी कसम से मुक्त करता हूँ।" एकनाथ ने कहा।
"चलिए माँ बाज़ार से खरीदकर लानेवाली सामग्री की सूचि बनाते हैं.. मैं भी आपकी सहायिका बनना चाहती हूँ। बहती गंगा में आचमन कर ही लूँ।" एकता ने कहा।
धरा धारा माँ पाषाण दिखती है।
सबक जीवन का सिखलाती है।
बचपन के ज़माने को जाने ना दें,
उसकी दुआ ही दंश से लड़ती है।
समय की समुंदर में तूफान कोई भी हो अपनो़ के आपसी स्नेह, एकजुटता, सहयोग की भावना और कर्मठता पतवार की तरह नौका संभाल लेती है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण और प्रेरक संदेश प्रेषित करती सराहनीय लघुकथा दी।
सादर।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 30 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजब आपसी प्यार और सहयोग की भावना हो तो जंग कोई भी हो जीत निश्चित होती है ,सुंदर लघु कथा ,सादर नमन दी
ReplyDeleteबाँध कर रखने वाली लघु कथा। प्यारा संदेश लिए अच्छे भाव उकेरे हैं आपने
ReplyDeleteसादर नमस्कार
परिवार के आपसी स्नेह को दर्शाती सुंदर रचना ।
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आकर अच्छा लगा।
बहुत ही सुंदर सन्देश देती प्यारी सी लघुकथा। यदि इस कठिन समय में हर व्यक्ति अपने परिवार और समाज के विषय में सोचें तो यह कठिनाई भी हमारे लिए वरदान बन सकती है।
मैं ने भी अभ्यास किया कि ये अपनी प्रतिभाओं और सद्गुणों को विकसित करने का अच्छा समय है और मैंने भी ब्लॉगिंग की षुरूआत कर दी। आप सबों ने बहुतसबह और प्रोत्साहन भी दिया।
आपसे सविनय है,कृपया मेरे भी ब्लॉग पर आइये। मैं वहाँ अपनी स्वरचित कविताएं डालती हूँ। आपके आशीष व प्रोत्साहन के लिये आभारी रहूँगी।
लिंक कॉपी नहीं कर पा रही। मेरे नाम पर क्लिक करियेगा, वो आपको मेरे प्रोफ़ाइल तक ले जाएगा। वहाँ मेरे ब्लॉग काव्यतरंगिनी के नाम पर क्लिक करियेगा, आप मेरे ब्लॉग तक पहुंच जाएंगी।
हृदय से आभार।
धन्यवाद।