"मैडम जी पिंजड़े में ही था !" रामरतन ने कहा
"यह क्या है तुम्हारे पास सदा साथ देने वाला तुम्हारा सब्जियों वाला ठेला कहाँ गया? हमें बहुत सहूलियत रहती थी..।" रोमा सवालों के मशीनगन दाग रही थी।
करीब पंद्रह-सोलह साल से रोमा अपने पति रोनित के संग उस अपार्टमेंट में रह रही थी । बिना नागा रामरतन को सब्जियों का ठेला लगाते देखा था। ऋतु बदलते रंग में, अचानक किसी अतिथि के आने से , अपने अस्वस्थ्यता में सब्जियाँ खरीदने जाने में उन्हें कभी परेशानी नहीं उठानी पड़ी। रामरतन को शहर से बाहर जाना होता तो भी वो सब्जियों से भरा ठेला उस अपार्टमेंट में गार्ड के हवाले कर जाता।
"वो क्या है मैडम जी सब्जियाँ बेचना सही नहीं रह गया था। कहीं मजूरी मिल नहीं रही थी। फाके के नौबत आ गए। मेरी पत्नी सिलाई का रोजगार करती थी। कुछ कपड़े घर में पड़े थे
कुछ पैसे गुल्लक में थे। उससे दोहरे कपड़े का फेसमासक व एक-एक सेनेटाइजर , थर्मोमीटर और साबुन कुछ जुगाड़ कर...।"
"सब्जियाँ तो बेची ही जायेगी और दूसरे ठेले वाले..,"
"शाबास रामरतन! तुम जो कर रहे हो बहुत अच्छा काम कर रहे... हम ऐसा काम करें जो दूसरे उसका नकल करें! और सुनो रोमा बाज पक्षियों संग नहीं उड़ता।" रोमा को अधूरी बात में टोकते हुए रोनित ने कहा।
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चिंता केवल अपनी करनी है ... अपने बचाव के लिए केवल अपने हाथों को साफ किया जा सकता है... सुरक्षा के लिए अपनी गाड़ी का प्रयोग करना है.. जो आबादी है और जिनके पास गाड़ी है और जिन्हें कार्य–स्थल जाना है ये तो भीड़ होना/ जाम होना स्वाभाविक है...
हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 03 जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteदोगुना हो गया आभार
Deleteकौशल को थोड़ा सा इशारा भर सहारा मिल जाये सरकार से झूठ मूठ वाला नहीं तो सोने पे सुहागा हो जाये।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4.6.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3722 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
हार्दिक आभार आपका
Deleteअच्छी लघुकथा दी। कुछ ज्यादा मेहनत करके भी कमाई का जरिया मिलता रहे लोगों को,इस वक्त वही काफी है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत अच्छी लघुकथा दीदी कौशल हो तो आदमी कभी भूखा नहीं मरता।
ReplyDeleteअच्छी सार्थक लघुकथा
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