यादों में यात्रा करती हूँ तो सन् उन्नीस सौ तिहत्तर तक सहरसा में सहेलियों (तब सहेला का ज़माना नहीं था) के साथ पहाड़ी नदी के समान उछलते कूदते उन्नीस सौ चौहत्तर में मझवलिया उसके बाद सीवान। उन्नीस सौ बयासी में रक्सौल (बीरगंज-काठमांडू-पोखरा) वहाँ से उन्नीस सौ अठासी में मुजफ्फरपुर स्थापित हो गए... लेकिन तबतक केवल पेट भर जाने को जाना था।
भोजन के नाम पर नॉनवेज और भात से परिचय था। बिहार से बिहार में घूमने से मछली से मीट तक की पहचान थी। उन्नीस सौ नवासी-नब्बे का कोई दिन होगा जब दिल्ली यात्रा में भोजन में मिला भात के संग मूंग-राजमा। पहली बार में ही स्वाद बदलकर विकल्प लगा, मीट-मछली ना मिले तो पेट भरा जा सकता है !
नहीं जी! आत्मा तृप्त हो सकती है। मेरी बातों पर यकीन ना हो तो बना कर देख लें।
उस समय होटल वालों में किसने कैसे बनाया होगा वो तो मुझे पता नहीं चला। लोबिया , छोला, अंडा, राजमा, अकेले बनते हैं तो चिकने घड़े हो जाते हैं...! अपने अंदाज और प्रयास से जो मैंने बनाना सीखा :– सामग्री
तस्वीर में दिखता कटोरा से चार व्यक्ति के अनुसार*
–आधा कटोरा हरी साबुत मूंग और एक कटोरा राजमा
दो बड़ा कटा हुआ प्याज
दो कटा टमाटर
1 बड़ा लहसुन
2 इंच का टुकड़ा अदरक
1 चम्मच हरा धनिया
1 चम्मच गरम मसाला
1 चम्मच किचन किंग
1 बड़ा चम्मच (रिफाइंड व सरसों तेल) मक्खन और क्रीम (हमेशा बनानी हो तो घी से भी काम चला लेते हैं)
1/2 चम्मच हरी मिर्च
दो तेजपत्ता 1 चम्मच जीरा
1 चम्मच नमक
हल्दी
*विधि*
साबुत मूंग और राजमा अलग-अलग बर्त्तन में भिगोकर रखें रात भर । अगर दिन में बनानी हो। सुबह धोकर साफ कर लें।
–एक कुकर में राजमा में पानी और आधा नमक डालकर उबाल लें। अच्छे से गल जाए.. थोड़ा कसर रह भी जाएगा तो मूंग के संग मिल जाएगा पकने का मौका।
–लहसुन को छील कर सूखे में हल्का भून लेते हैं, अदरक, हरी मिर्च, एक प्याज संग अलग से पीस लेते हैं।
–एक प्याज अलग बारीक काट कर रखते हैं।
–दूसरे कुकर को अच्छा से गर्म कर रिफाइंड/सरसों तेल *(मैं दोनों का प्रयोग करती हूँ बिहारी हूँ सरसों तेल से पीछा नहीं छुड़ा सकती। सरसों मसाले में भिंडी , बैगन मछली छोड़िए बाकी बातें फिर कभी)* में तेजपत्ता, जीरा, नमक डालकर प्याज के संग पीसे अदरक लहसुन वाले मिश्रण को भून लेते हैं । जब तेल छोड़ने लगता है तो दूसरा वाला प्याज टमाटर , गर्म मसाला, किचनकिंग डाल भून लेते हैं। मूंग और राजमा को मिलाकर ग्रेवी लायक पानी डाल कर सीटी पकड़ने तक पका लेते हैं ताकि मूंग खड़ा भी दिखता रहे और गला भी रहे। कुक्कर ढक्कन खुलने पर मक्खन क्रीम घी जो उचित लगे डाल गरम-गरम चावल पराठा संग खाइएगा और मेरी बुचिया को धन्यवाद कहिएगा
संग में कटे प्याज में नींबू मिलाकर भी रखा जा सकता है।
आत्मा ना भरे और पेट भर जाने के बाद मूंग राजमा बच जाए ... तो भेल-पापड़ डाल कर चाट बना कर कुशल गृहणी होने का दावा पेश करें। वैसे अच्छे महाराज कुक पुरुष ही होते हैं..। देश-विदेश घूमने के बाद महिला कुक नहीं दिखी जो।
हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteबात तो बिल्कुल सही है बहुत ही अच्छी रेसिपी बताइए आपने
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबनाकर देखेंगे तब बतायेंगे कैसा है।
ReplyDeleteप्रतीक्षा है छूटकी
Deleteभावपूर्ण संस्मरण।
ReplyDeleteअच्छी रचना
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