लगभग तीन साल से चिकित्सा जगत से दूरी बना रखा था। इस काल का सदुपयोग चिकित्सक के चक्कर लगाने में करने का निर्णय करते हुए इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान पहुँच गए। कुछ दिनों से सीने और गले में परेशानी थी। अच्छा था कि मास्क लगाना अनिवार्य था। चीटीं को भी सरकने में दम घूंट रहा होगा इंसानों के बीच से। पहला दिन जेनरल फिजिशियन ने कार्डियोलॉजी में रेफर कर दिया। भीड़ के कारण नम्बर नहीं लग पाया। दूसरे दिन जाने पर चिकित्सक से भेंट हुई और जाँच शुरू हुआ। एक परेशान हितैसी का प्रवेश हुआ
"इको टेस्ट करवाना है नम्बर लगा दें,"
"जाँच आज नहीं हो सकेगा, कल सुबह आइए।"
"कल डॉक्टर ऑपरेशन करेंगे टेस्ट का रिपोर्ट आज ही चाहिए।"
"आज नहीं हो सकेगा,कह...,"
"लीजिए; डॉक्टर साहब से बात कर लीजिए, इमरजेंसी है।"
"मुझे किसी डॉक्टर से बात नहीं करनी। कल सुबह आइए टेस्ट हो जाएगा ऑपरेशन के पहले रिपोर्ट मिल जाएगा।"
"आप एक बार डॉक्टर...,"
"टेस्ट रिपोर्ट पर डॉक्टर को केवल पुर्जी लिखनी है। वो भी दवा विक्रय प्रतिनिधि के वैसाखी के सहारे...। टेस्ट करने वाले डॉक्टर का काम ज्यादा जोखिम भरा है..,"
अहम ब्रह्मा ,,,,,
ReplyDeleteपुर्जी ही लिखनी है..
ReplyDeleteसादर नमन
अक्सर यही होता है
ReplyDeleteसब की अपनी अपनी दुविधा और सुविधा के तहत काम करते हैं
अच्छी पोस्ट
सबको अपना काम ज्यादा महत्त्वपूर्ण लगता है ।।
ReplyDeleteकटु सत्य
ReplyDeleteये तो लाजवाब लगी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteकड़वा सच।
ReplyDeleteये आज का कड़वा घूंट है जिसे मजबूरी वश सबको पीना पड़ रहा है,सादर नमन दी 🙏
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