"क्या इस घर के मालिक को बच्चे पसन्द नहीं थे कि इकलौता बेटा हुआ और उस इकलौते बेटे ने औलाद ही नहीं किया?"अभी फँख फैले नहीं थे लाल-लाल गलफड़ वाले दुधमुँहे चूजे ने माँ चिड़ी से पूछा।
"अरे नहीं रे! मालिक को बच्चे बहुत पसन्द थे। मेरी दादी बताया करती थीं कि ये अपनी ही शादी में आए छोटे-छोटे बच्चों को कप-प्लेट, लैंप-लालटेन के शीशे को फोड़ने पर क्रमानुसार चवन्नी-अठन्नी-रुपया-दो रुपया दिया करते थे। च च चनाक, ट्टुन ट्टुन टनाक बिखरे किरचों के ढ़ेर पर माँ, बुआ, मामी, चाची, मौसी से डाँट खाने से बेहद प्रफ्फुलित होते।" माँ चिड़ी किस्सा सुना रही थी।
"संयुक्त परिवार के सुख को भोगा पिता-पुत्र अपने पुश्तैनी घर को बाल गृह बना रखा है।"
"मालिक के बेटे के अनुशासन में हमें निश्चिंतता की जिन्दगी मिल जाती है। है न माँ!"
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-06-2022) को चर्चा मंच "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक- 4450) (चर्चा अंक-4395) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वन्दन के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteचलिए किसी की तो रक्षा होती है । लेकिन आगे क्या संयुक्त परिवार तो बहुत दूर की बात हो गयी अपना ही परिवार पूरा नहीं ।
ReplyDeleteअब सब एक में समा गया है
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2022) को चर्चा मंच "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक- 4450) (चर्चा अंक-4395) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चलो चिड़ियों को तो निश्चिंतता की जिंदगी मिली उस बड़े पुस्तैनी घर में.. अब परिवार वाद तो रहा नहीं...
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteजी , उम्दा सृजन ।
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