Sunday, 19 June 2022

स्वस्तिक पर खून के छींटे

 





"कल बिहार बन्द था।"

"कल भारत बन्द है और हमारी वापसी है, न जाने कैसे हालात होंगे..।"

"हालात जो होने चाहिए उसके पसङ्गा भर नहीं हो पा रहा।"

"क्या आपके द्वारा, तोड़-फोड़, आगजनी और देश के सम्पत्ति नष्ट करने को समर्थन देते हुए उचित ठहराया जाना समझ लूँ?"

"आपको क्या लगता है, कथा-कहानी, गीत-कविता लिखने से स्थिति बदल जाने वाली है? लिखते रहिए, कुछ नहीं होने वाला। पचासी साल के बुजुर्ग वकील से डर लगता है...,"

"क्या आपका कहना न्यायसंगत है कि कलम से जंग नहीं लड़ी जा सकती?"

"जरूर लड़ी जा सकती है। लड़ी भी जाती रही है। लेकिन वर्त्तमान काल क्या दुबककर रहने का चल रहा है...!

11 comments:

  1. अन्दर भरने से अच्छा है बाहर निकाल कर सजाते रहें

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 21 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-6-22) को "पिताजी के जूते"'(चर्चा अंक 4467) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  4. समय अपनी गति से चल रहा है । लोगों में बिना सोचे समझे विरोध ही करना है , । विरोध करिये लेकिन देश की संपत्ति को नष्ट कर तो आप देश द्रोही बन रहे हैं ।

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  5. मुझे लगता है कलम मो आपने विचार जरूर व्यक्त करना चाहिए, चुप रहना भी एक तरह का समर्थन मना जाता है ऐसा हमारा विचार है।

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  6. लपटों से लपलप है अग्निपथ ,
    कलमवीर है आहत लथपथ।

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  7. कलम वीर जो कर सकते है वो उन्हें करते रहना चाहिए।

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