सिंदूरी सन्ध्या श्यामली निशा को अपना अधिकार सौंप देने ही वाली थी... घरों से निकले अनेकानेक गन्ध-सुगन्ध भुवन में फैल रहे थे। एक तरफ उन घरों में वामाएँ प्रतीक्षारत थीं तो दूसरी तरफ सजी सँवरी अनारकली पोशाक में , झीना घूँघट डाले, पैरों को हिलाते हुए घँघुरओं के स्वर से उतावलापन फैला रही थी।
"बकरी की अम्मा कब तक खैर मनाएगी?" सारंगी ने तबले से कहा।
"मनाएगी न ! मनाएगी, बकरी की अम्मा खैर मनाएगी। शहर के धन्नाराम, नए-नए मूँछ वाले बोली में बढ़त लगाते जा रहे हैं.. । बकरे का सौदा जो ऊँची नाक के दिखावे में बदल गया।" तबले ने कहा।
दूर कहीं बज रहा था
न हीरा है न मोती है न चाँदी है न सोना है
नहीं क़ीमत कोई दिल की ये मिट्टी का खिलौना है
और मिट्टी मिट्टी में मिल जायेगी
ReplyDelete🙏
Delete