Thursday 25 July 2024

सुनामी

सुना है तुम बेहद क्रोधित हो…! समझा करो मोटा अर्थ के असामी के नख़रे उठाने ही पड़ते हैं…!”

 “समय के पहले से उपस्थित साहित्यकार, राजनीति के नेताओं की असफल प्रतीक्षा करें तो क्रोध कम, क्षोभ ज़्यादा होता है…। जो अर्थ मिला है वह हक़ से मिला है। बैंक हो, सरकारी कार्यालय हो या कोई भी विभाग हो वहाँ साहित्य के लिए ‘धन का पूल’ (फंड) होता ही होता है। उचित पात्र तक ना पहुँचे यह अलग मसला है। उचित पात्र को मिल जाए तो ऋण नहीं हो जाता है! ऋण है तो फिर चुकाना पड़ेगा…! चुकाने का कोई सोचता है क्या?”

 “तुम्हारा कहना सही है लेकिन निरंकुश शासन में किया क्या जा सकता है…!”
“विरोध के स्वर को सशक्त किया जा सकता है, निरंकुश को जताया जा सकता है, अपने को ‘कुकरी’ ना समझें, जिसे पैरों पर नभ टिके होने का भरम हो जाता है…,” 
“तुम ही समझ जाओ, बूँद की औक़ात ही कितनी…,”
 “चातक-सीप के लिए बूँद होना स्वीकार है…! सागर में समा गयी बूँद होना क़ुबूल है! सूरज सोखेगा, बादल में बदलेगा फिर खेत, खलिहान, नहर, कुँआ, पोखर, नदी, सागर में उलीच देगा…! कभी-कभी बादल फट जाता है! सैलाब आ जाता है…! हाथी के नाक में चींटी की जैसी, आँख में पड़े रेत के कण सी औक़ात…! दो-चार और उदाहरण दे दूँ क्या…!”
“अच्छा छोड़ो! चलो, अब पेट में चूहों की कबड्डी शुरू हो गयी है…!”
“भोजन में पूड़ी-सब्ज़ी तो होगी ही! चना की घुघनी मिल जाये,”
“तो तुम्हारी मनोस्थिति बदल जाये! चना की घुघनी 
(सामग्री :— 1 कटोरी भीगा हुआ काला चना, 1 प्याज़ कटा हुआ, 2 टमाटर कटा हुआ, 1 टुकड़ा अदरक, 2-4 हरी मिर्च, 1/2 छोटा चम्मच ज़ीरा, 2 तेज पत्ता, नमक स्वादानुसार, 1/2 छोटा चम्मच धनिया पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला, 1/2 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच हल्दी पाउडर, थोड़ा सा हरा धनिया कटा हुआ, 2-3 चम्मच सरसों का तेल
पकाने का निर्देश : — चने में नमक डालकर उबाल लें। अदरक, हरी मिर्च, प्याज़ और टमाटर को मिक्सी में पिस लें।
—एक पैन में तेल गरम करें और ज़ीरा चटकाये, तेज पत्ता और अदरक, हरी मिर्च, प्याज़ टमाटर का पेस्ट डालें। सारे मसाले डालकर भून ले और उबले चने डालकर अच्छे से पानी सूखा लें। तैयार है काला चना घुघनी।) तुम्हें कितना पसन्द है…!”
“मुझे चना की घुघनी बेहद पसन्द है। अंकुरित भीगा हुआ चना सुबह खाली पेट खाने से पाचन तंत्र, बीपी, इम्यूनिटी पावर, वजन कम, हड्डी मजबूत, खून की कमी, एनर्जी बूस्टर इत्यादि कई बीमारियों में बेहद लाभ मिलते हैं। मेरी सासूजी को भी बेहद पसन्द था! आजीवन वो सुबह के नाश्ते में एक कड़ाही में थोड़े पानी में बिना फुलाये चना को उबाल लेतीं, जब पानी सूखने के कगार पर होता तो उसमें नमक, कटी हरी मिर्च, कटा प्याज, थोड़ा सरसों का तेल डालकर भून लेतीं और भुने चूड़े के संग खाती थीं।”
“बढ़िया! चना की घुघनी तो नहीं है, छोला और पूरी-सब्जी, चावल है।”
“जो सब्जी उपलब्ध है वह ख़राब हो रही है, पूरी सूखकर पापड़ हो रही है! अच्छा यह बताओ, भोजन समय से आ गया था फिर सारा कार्यक्रम ख़त्म कर के चार बजे भोजन करवाने का क्या कारण रहा होगा…!”
“हाँ। वही सही होता। सदस्यों की रचना का पाठ भी बाक़ी है।”
“सदस्यों की रचना का पाठ कहाँ होना है…!”
“सदस्यों के उत्थान पर इतना शोर और जलसा और सदस्य केवल भीड़ का हिस्सा…”
“सदस्य ताली बजाने वाली भीड़!”

Wednesday 17 July 2024

ज्ञानमीमांसा : अनरसा

 “पिछले चालीस वर्षों से मैं अपनी पत्नी को अपने साथ लेकर जाता था! अब ये मुझे अपने साथ लेकर चल रही हैं!” बिहार के गया जी में साहित्यिक यात्रा के क्रम में देश के कोने-कोने से एकत्रित हुए साहित्यकारों के सम्मुख, विदाई सत्र में गोखले मुख़ातिब थे!

 “महोदय! हमारी माँ पहले भी आपकी अनुगामिनी थीं और आज भी उन्हें हमलोगों ने आपकी अनुगामिनी बने ही देखा! इस तुषार के बच्चे को देखिए अपनी पत्नी से तलाक़ ले रहा है!” 

“तलाक़ लेने का प्रस्ताव मैंने नहीं रखा था…! हाँ नहीं तो!”

 “चलो मान लिया कि तलाक़ का प्रस्ताव तुमने नहीं रखा लेकिन पत्नी को खर्च करने के लिए रुपया नहीं देना पड़े इसलिए तुमने नौकरी से सेवानिवृत्ति ही ले लिया…!”

“हाँ! ना रहेगा बाँस और ना बज सकेगी बाँसुरी..!”

“आजकल जितने महीने शादी के चोंचलें चलते हैं उतने महीने शादी ही नहीं चलती है…!”

“हाँ! हाँ! अब बताओ कौन कितना सही और कौन कितना ग़लत? हमने माँ को भूटान यात्रा के क्रम में जिस तरह महोदय का ख़्याल रखते देखा! और आँखों के सामने से माँ के ओझल होते, महोदय को परेशान होते देखा गया! इश्क़ के उफान का उदाहरण इनदोनों के जज़्बात को नमन करता हूँ।”

 “सुनो तुषार! दोशीज़ा के लिए थोड़ी सी फ़िकर और थोड़ी सी क़दर : रिश्तों पर दिख जाता है गहरा असर…!”

 “गया जी को केवल मोक्षधाम के लिए नहीं जाना जाता है। यहाँ का तिलकुट {भागलपुर के कतरनी चूड़ा और गया के तिलकुट का अब भी कहीं दूसरा जोड़ नहीं! (सामग्री : 8 —500 ग्राम तिल, 400 ग्राम गुड़ / गुड़ पाउडर, 250 भूना खोया, मुट्ठी भर भूना हुआ काजू का टुकड़ा (ड्राई रोस्ट) 1. सबसे पहले तिल को सूखा भून लेना है हल्का सा सुनहरा। 2. अब अगर आपने साबुत गुड़ लिया है तो पहले उसको टुकड़ों में तोड़ ले गुड को कुटेंगे तो वो काफी अच्छे से टूट जायेगा मै तो गुड़ का पाउडर ही ले रही हूँ जो आजकल आराम से बाज़ार में मिल जाता है। 3. अब थोड़ा-थोड़ा गुड़ और तिल को साथ में मिक्सर/ब्लेंडर में धीरे धीरे पीस लें ध्यान रहे तिल का तापमान गरम से गुनगुना तक हो, ठंडा नहीं। 4. खोया मिला ले और अब इसमें सूखा भूना काजू टुकड़ा भी मिला लें। वैसे ये पूरी तरह से वैकल्पिक भी है।) आइये पूरी तैयार है सीधी सरल किन्तु बहुत ही स्वादिष्ट और सेहतमंद सर्दियों की मिठाई। उसे आकार तो हम-आप अपनी-अपनी मर्ज़ी से दे लेंगे…!} भी प्रसिद्ध है तो क्या आपलोग जानते हैं कि गया जी की एक और मिठाई लोगों की जुबान पर खूब चढ़ती है। जी हाँ! आपने सही पहचाना, बात कर रहा हूँ यहाँ की ही प्रसिद्ध अनरसा की।

चावल का अनरसा {2 कटोरी चावल आवश्यकतानुसार घी/तेल तलने के लिये 1.1/2 कटोरी चीनी मावा -सौ ग्राम तिल आवश्यकता के अनुसार दूध पकाने की विधि 1. सबसे पहले चावल को तीन दिनों के लिये भिगोकर रखना है और रोज़ पानी को बदलते रहना है 2. तीन दिनों के बाद चावल को अच्छे से धोकर सूखा लेना है। पंखें के नीचे कपड़े पर फैलाकर। चावल को मिक्सर जार में डालकर बारीक पीस लेना है और छलनी से छान लेना है… 3. अब आधा कप चीनी को भी बारीक पीसकर छान लेना और एक पैन में एक कप चीनी आधा कप पानी डालकर एक तार की चाशनी बना लेना है 4. अब चावल के आटा और खौलते चाशनी को मिला लेना है 5. अब दो चम्मच दूध डालकर आटा गुथ लेना है और दो घंटे के लिये सेट होने के लिये रख देना है 6. अब आटे और आधा मावा को मसल-मसलकर चिकना कर लेना है उसके लिये 5 मिनट तक मसले और अब छोटी-छोटी लोई बना लेना है 7. आधा मावा में चीनी का पाउडर मिला कर भरावन के लिये गोली बनाना है। 8. ⁠अब एक लोई को हाथों से दबा कर थोड़ा सा गोल बेल लेना है और उसमें मावा की गोली को भर लेना है। और सभी अनरसा ऐसे ही बना लेना है 9. ⁠एक अनरसा के बॉल को हल्का चिपटाकर एक तरफ तिल चिपका लेना है 10. ⁠अब एक कड़ाही में घी/तेल गरम कर लें और धीमी आँच पर अनरसे को तल लेना है, अनरसा को एक ही तरफ से ही सेंका जाता है 11. ⁠सभी अनरसो को एक जाली पर रखते जाये ताकी अतिरिक्त घी/तेल निकल जाये} स्‍वाद का जादू ऐसा कि गया जी आने वाले अनरसा लेकर ही लौटते हैं। ज़ुबान भी थोड़ी मीठी रखनी चाहिए…!”

Wednesday 3 July 2024

पटी दरारें

आग पर चढ़े बर्त्तन में खौलते अदहन में खुदबुदाते चावल सी नहीं होती स्त्रियाँ कि अँगूठे और तर्जनी के बीच एक दाने को मसल कर अंदाज़ा लगा लिया जाता है, चलो सारे चावल पक गए होंगे : अब भात तैयार हो गया…! वैसे भी! उस तरह देखने के बाद भी चावल का स्तर कुछ चावल अधपके रह ही जाते हैं…! स्वतंत्रता से एक कदम आगे ही होती स्वच्छंदता : विनाश की ओर बढ़ जाती हैं स्त्रियाँ! लेकिन दोष केवल स्त्रियों का भी नहीं होता है...। यह ढूँढ़ना सबसे आसान है दूसरे को क्या करना चाहिए। सबसे कठिन है यह ढूँढ़ना मुझे क्या करना चाहिए…। आगे की कहानी कुछ यूँ है, अगुआ की मेहरबानी से पुष्पा की शादी तय हो गयी थी। दोनों पक्षों की बड़ाई को बढ़ा-चढ़ा कर बताना उसका धर्म था। अगुवा अपने कार्य में कुशल था। वैसे कुछ बातें सच भी थी, जैसे कि पुष्पा सारे कार्य करने में दक्ष है-खाना अच्छा बनाती है, कढ़ाई बुनाई-सिलाई अच्छा कर लेती है। अपने कपड़े ख़ुद सिलती है। लेकिन शादी में सिलाई मशीन नहीं मिलने के कारण उलाहने मिलते। कोई ना कोई शब्दों से कोंच देता। उसकी शादी के पाँच वर्षों के बाद उससे बड़े भाई की शादी में उसे सिलाई मशीन नेग में मिल गया। बिहसती हुई सिलाई मशीन लेकर ससुराल आयी। विदाई में मिले माठ (— भइ जो मिठाई कही न जाई। सुख मेलत खत जाय बिलाई। मतलड़ छाल और मरकोरी। माठ पिराँके और वुँदौरी ।— जायसी (शब्द॰)। विशेष— मैदे की एक मोटी और बड़ी पूरी पकाकर शक्कर के पाग में उसे पाग लेते हैं। इसी को माठ कहते हैं। यही मिठाई जब छोटे आकार में बनाई जाती है, तब उसे 'मठरी' वा 'टिकिया' कहते हैं। मठरी नमकीन भी बनाई जाती है। बिहार में वर पक्ष से वधू के घर माठ आता-जाता है।)-लड्डू-खाजा-गाजा-खुरमा-बालूशाही से ससुर जी को प्रसन्न करने का बहाना बना रही थी। घर में बने मिठाई का स्वाद ही अलग होता है। आसानी से बनाया जा सकता हैं। बालूशाही खाने में एकदम खस्ता होती है। यह बाहर से हल्की कठोर और अंदर से एकदम मुलायम होती है। बालूशाही मुँह में रखते ही पिघल जाती है। जानें कैसे बनती है बालूशाही...। बालूशाही बनाने की सामग्री:

मैदा- 2 कप

घी- 1/2 कप

बेकिंग पाउडर- 1 छोटी चम्मच

मावा- 1/4 कप

पिस्ते- 10-12 बारीक कटे

बादाम- 3 बारीक कटे

काजू- 3 बारीक कटे

पाउडर चीनी- 2 टेबल स्पून

चीनी- 2 कप, चाशनी बनाने के लिए

इलायची पाउडर- 1/2 छोटी चम्मच

घी- तलने के लिए

एक बड़े बर्तन में 2 कप चीनी और 1 कप पानी डालकर उसको गैस पर रख दें। चाशनी को एक तार बनने तक पकाएं। अब उसे ठंडा होने तक रख दीजिए, लेकिन ढँककर रखी जाएगी ताकि हल्की गरम भी रहे। बालूशाही इसमें ही डुबाकर निकाला जाएगा।

विधि :– मैदा को एक बर्तन में लें, इसमें बेकिंग पाउडर, घी डालकर मिक्स कर फ्रिज के ठंडे पानी से गूंथ लें, लेकिन पूरी तरह मसल-मसल कर रोटी की तरह नहीं मिलाना है और उसको 10-15 मिनिट के लिए ढक्कर रखें। स्टफिंग बनाने के लिए पैन को गैस पर रखें और इसमें मावा डालें। मावा को भूनकर एक बर्तन में रखें। मावा ठंडा हो जाने पर 2 बड़े चम्मच पाउडर चीनी, बारीक कटे काजू, बादाम, थोडा़ सा इलायची पाउडर मिलाकर रख लीजिए।

गुथे मैदे से छोटी-छोटी लोइया बनाएं। एक-एक लोई को कटोरी का आकार देते हुए गोल करें, बीच में 1/2 छोटी चम्मच मावा स्टफिंग डालकर मैदे को चारों ओर से उठाते हुए स्टफिंग को बंद करें। ऐसे ही सारी बालूशाही बनाएं। तलने के लिये कढ़ाई में घी डालकर धीमी आंच पर हल्का गरम कीजिए। बालूशाही को डालकर हल्की सी ब्राउन होने तक तल लें। जब सब तल जाए तो हल्की गरम चाशनी में डाल-डालकर निकाल लें।

कुछ ही दिनों में उसकी ननद की शादी तय हो गयी तो उसे समझाया गया कि अपना उपहार वो ननद को दे दे। वो तो सास की मशीन पर अपनी कुशलता की परीक्षा पास कर ही चुकी है, (ननद अपने कपड़े भाभी से सिलवाती, पहनकर महाविद्यालय में प्रचार भी करती। प्रधानाध्यापक की बिटिया पक्की सहेली थी। अब सहेली की भाभी के हुनर का आनन्द उसे भी मिलना चाहिए तो उसके भी कपड़े सिलने आये। भाभी का डर से हालत ख़राब। गला काटने में गलती हो जाना स्वाभाविक बात रही। वो तो पूरा कपड़ा था जिससे कुशलता से गलती को सुधार लिया गया। राज का राज आज खोला जा रहा है…।) आगे भी सफलता पाती रहे। पति महोदय ने वादा किया कि शादी के ख़र्चों से उबरते ही पत्नी की पसन्द की सिलाई मशीन ख़रीद देंगे। बड़े भाई हैं अत्यधिक खर्च करना उनका दायित्व बनता है। वो भी सहयोगी होने के ध्येय से ख़ुशी-ख़ुशी अपने ज़िगर के टुकड़े सा सिलाई मशीन ननद को सौंप दी। ननद के लिए तो हाथी शौक़ के लिए पालने वाली सी चीज थी…! बहुत समझा-बुझाकर मशीन से सिलने के लिए एक बार बैठायी गयी थी। ख़ैर! पति महोदय अच्छा वाला जिससे कढ़ाई भी आसानी से हो और सिलाई भी बढ़िया हो सके महँगा वाला सिलाई मशीन ख़रीद देने को कहा गया। वे अनसुना करते रहे तो उनका वादा याद दिलाया गया क्योंकि त्रिया चरित्र आँसू हथियार असर नहीं करता था…! उन्होंने अपना वादा पूरा करने के लिए पुष्पा के सामने शर्त रखी कि “तुम वादा करो कि किसी तरह से भी सिलाई मशीन को आमदनी का माध्यम नहीं बनाया जाएगा।” सपना का अण्डा टूटकर बह गया! क्या करेगी इतना महँगा सिलाई मशीन लेकर…। कोखजाई नहीं होने की टीस उस दिन पुनः हृदय में फफोले बना गयी…! पति अभियन्ता थे, उनके साथ काम करने अनेकों अभियंताओं की पत्नियों का कल्ब खोला गया जिसमें कढ़ाई-सिलाई, वाटिक, बाँधनी, फ़ैब्रिक पेंटिंग, ऑयल पेंटिंग, बालू पेंटिंग, निब पेंटिंग, स्केचिंग इत्यादि तमाम कलाओं को सीखने सिखलाने में अपने को रमा दी। देखने वाले कहते गिनीज़ बुक में नाम दर्ज करवाना है क्या? व्यंग्य रहा हो या खिल्ली उड़ाना, मुस्कुराकर वक्त के बनाये राह पर चल रही थी। पति का जहाँ तबादला होता वहाँ उसका प्रचार पहले पहुँच जाता। पति उसके मुँह पर प्रशंसा नहीं करते लेकिन उसकी कला को उसकी क्षमता को पहचानते तो थे! उसके पति अपने पेशे में बेहद ईमानदार थे तो तबादला भी जल्दी ही जल्दी होता। एक नये शहर में पहुँची तो चमड़े-रेक्सिन के बैग बनाना सीखने का मौक़ा दिखा। वहाँ फार्म भरना था जिसमें आय भरना था। जहाँ सिखाया जाता था वहाँ रहने, नाश्ते-खाने की व्यवस्था थी, सामान ख़रीदने का पैसा मिलता था। उसमें उसके पति के आय के कारण उसका नामांकन नहीं हो सकता था। वह प्रबंधक से मिलने का समय ली और सीखने का मौक़ा माँगी बिना किसी चीज का लाभ लिए। तब उसका नामांकन हो गया। उसी समय वह मोती, पोत, नग जड़े पत्थर से गहना बनाना भी सीख ली। अलग-अलग प्रांतों की महिलाओं से मिलने का जब मौक़ा मिलता तब उस प्रान्त का भोजन बनाना सीख लेती। कुशल महिला बनने में दूरदर्शन भी बहुत सहायक रहा। अनेक कार्यक्रम प्रसारित जो होते सभी को ध्यान से देखती सीखती बनाने का प्रयास करती। मायके से बुनाई मशीन भी उपहार में मिल गया। उसके हाथ से बुनाई का हुनर ज़्यादा पसन्द किए जाते। उसके हाथ का बना भरवा दही बड़ा आह-वाह निकलवा ही लेता!

भरवा दही बड़ा बनाने की सामग्री

250 ग्राम उड़द की दाल

एक मुट्ठी मूंग की धुली दाल

आवश्यकतानुसार सूखे मेवा (काजू,किशमिश, पिस्ता) बारीक काटा हुआ

2 हरी मिर्च कटी हुई

थोड़ा सा हरा धनिया

चुटकी भर सोडा

स्वाद अनुसार नमक

आवश्यकतानुसार तलने के लिए तेल

1/2 किलो दही

1 छोटी कटोरी खट्टी मीठी इमली की चटनी

आवश्यकतानुसार हरी चटनी

थोड़ा जैम

थोड़ा सा अनारदाना

थोड़ा सा हरा धनिया

थोड़ा सा चाट मसाला

थोड़ा सा भुना जीरा पाउडर

स्वाद अनुसार काला नमक

स्वादानुसार भूना लाल मिर्च पाउडर

पकाने का निर्देश : कटी हुई हरी मिर्च, सूखे मेवे, धनिया मिलाकर भरने के लिए

दाल को अच्छे से धो कर 6-8 घंटे के लिए भिगोकर मिक्सर में थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट बना लें इसको हाथों से अच्छे से 5 मिनट तक लगातार फैटे । कुछ घंटे ढँककर छोड़ दें जिससे मिश्रण थोड़ा हल्का हो जाए तब उसमें नमक मीठा सोडा डालकर अच्छे से मिक्स करें और हथेली में हल्का पानी लगाकर थोड़ा पेस्ट रखें उसमें भरावन भरें तथा गर्म तेल में मध्यम आँच पर छोटे-छोटे बड़े तल लें। हल्के गर्म पानी में दही बड़ों को डालते जाएं और आधे घंटे तक भिगोकर रखें। थोड़ा सा दबाकर एक बड़े बर्तन में दही बड़े रखें दही को छलनी में मैश करके छान लें इसमें दो तीन चम्मच पिसी हुई चीनी मिक्स करें और बड़ों के ऊपर डाल दें। इसके ऊपर मीठी चटनी हरी चटनीहरा धनिया, भुना जीरा पाउडर, चाट मसाला, नमक, लाल मिर्च, अनारदाना डालें और सबसे ऊपर जैम सजायें

जिस तरह पुष्पा अपने को तपाती रही बिना कोई मंजिल तय किए चलती रही…, बस! चलती रही, चलती रही! आमदनी की ज़रूरत ही क्या थी!


काली घटा

“ क्या देशव्यापी ठप हो जाने जाने से निदान मिल जाता है?” रवि ने पूछा! कुछ ही दिनों पहले रवि की माँ बेहद गम्भीररूप से बीमार पड़ी थीं। कुछ दिनो...