Saturday, 2 February 2013

दूर नहीं हुई आशंका ....। अब सोच में हूँ ....।




दुखित था मन ,व्यथित था हृदय ,जब था आक्रोश .... 
हम ऐसे हो जाएँ , खुश हों , मौत के सुन आदेश .... ??
लो आ गया , जारी भी होगा अध्यादेश ....
बदल गया कानून , बदल भी जायेगा देश .... ??
क्या बीतेगी उनपर , जब माँ पत्नी सुनेंगी सन्देश ....

हो तो वही रहा है ,सुनने की थी जिसकी आस ....
मन व्यथित और हृदय क्यूँ है , फिर उदास ....

मिलेगी तो उन्हें भी सज़ा ,जबकि नहीं उनका कोई दोष .... 

मैं फेशबूक और ब्लॉग की दुनिया में ,
समय गुजारने के ध्येय से आई थी ....
अकेलापन , जिसे मैं अपने स्वभाव से चुन ली थी
उसे दूर करने का साधन मिला था ....,
जो मन को भा रहा  था ....
बहुत कुछ सीखने को मिला ....
बहुत अपने मिले ....
पढ़ने के लिए बहुत कुछ मिला ....
पढ़ना शुरू की ....
एक ब्लॉग से दुसरे ब्लॉग तक ....
यहाँ भी बहुत उलझने हैं ....
कहीं लगता है , रास्ता साफ नज़र आ रहा है ....
कहीं लगता है ,एक ,दुसरे का रास्ता काट रहा है ....
कोई कहता नज़र आ रहा है ....
काश ....
लौटा पाते , दिन  वो तो ,
जीवन facebook , Google , Blog की
बातें 18 वीं सदी के शास्त्रार्थ की ....
पढ़ते-पढ़ते अपनी ,एक नई सोच बन रही है ....
दूर नहीं हुई आशंका  .... अब सोच में हूँ ....

जब हालात समझने में एक राय नहीं ....
जब हालात सुधारने में एक राह नहीं ....
तब लगे हैं बदलने में सोच की दिशा .... 
 तब लगे हैं बदलने में समाज की दशा ....
उलझन है कि सुलझती नहीं .... 
बेकरारी को करार आती नहीं ....
नाम की इच्छा तो ना कभी थी ....
और आगे कभी हो भी गई तो वो बेबकूफी होगी ना ....
लिखना तो आज भी नहीं आता ....
कभी कुछ  लिख ली तो बस ....


13 comments:

  1. ये भी एक जद्दोज़हद है.....

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  2. HA HA Q... OH ये नयी मुशीवत आपने कहाँ स ढुँढ ली ? ऐँसे दरिँदो के लिए ये रिस्ते कोई मायने नही रखते इसमेँ no ... tensan ..

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  3. जब हालात समझने में एक राय नहीं ....
    जब हालात सुधारने में एक राह नहीं ....
    तब लगे हैं बदलने में सोच की दिशा ....
    तब लगे हैं बदलने में समाज की दशा ....


    सच्ची बात कही है. पहले आपसी वैमनस्य तो दूर हो.

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  4. उलझन है कि सुलझती नहीं ....
    बेकरारी को करार आती नहीं ....

    sahi kaha didi...kuch aisi hi kashmakash hum sabki bhi hai....

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  5. ... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

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  6. क्या करू मन के इस उलझन को जो सुलझाए नही सुलझती और भी उलझती ही जाती है..

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  7. बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति एक अकेले मन की ...... दुनिया ( नेट की ही सही ) के चोराहे पर अनेक रास्ते जाना किदर हैं क्या सही हैं कशमकश जारी रहती हैं

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  8. बड़ी उलझन है -
    बढ़िया अभिव्यक्ति
    जारी रहिये

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  9. लिखना आये न आये
    मन की अभिव्यक्ति रास्ते बना लेती है
    सब एक से कहाँ होते
    प्रकृति भी सिर्फ समतल नहीं होती
    उसमें गीत भी है
    आवेश भी
    पहाड़ों सी कठोरता भी
    वाष्प,बारिश,धुंआ,जंगल
    सबकुछ है
    तो परिवर्तन के आगे बाधाएं होंगी न ...

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  10. उलझनों का सुंदर चित्रण

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  11. बहुत ही सार्थक सोच,आभार।

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  12. मन यूँ अक्सर उलझता है विभा दी.....
    खुद ही शांत भी तो जाता है.....

    जब दिल चाहे ,जितना दिल चाहे, जहाँ दिल चाहे लिखिए....
    हमारी अपनी मर्जी :-)
    सादर
    अनु

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