Monday, 28 January 2013

रच शौर्य गाथा ना गा चाँचरी( वह गाना जो वसंत में गाया जाता है )


आज लगता है , काश मुझे भी होती , एक धी .....
******************************************
आ जा ,सुन ल जा बात खरी-खरी(स्पष्ट)
ना बताइब ,ना समझाइब बारी-बारी(बार-बार)
बहुत चला चु क ल जा जुबान के आरी(लकड़ी काटने वाला)
अब आ गइल बा ओकर पारी
अपने पे आगइल त पड़ी भारी
शर्मों - हया से संकुचल नारी
पा जाये मान - सम्मान त हो जाए वारीफेरी(निछावर)
ना समझ ओकरा क अबला-बेचारी
संगी संयमित ना रहे त मार पिला-पिला वारि(पानी)
ना बुझ बेटी के  नाजुक गिरी(किसी बीज के अन्दर का गुदा)
उ लाँघ चूकल बड़हन(ऐवरेस्ट) गिरि(पहाड़)
कोई छूये ना , ओकर आँचल के किनारी
ना त भोंक दी , तोरा छाती पे कटारी
हो चुकल अरिघ्न(शत्रु का नाश करने वाली) ना बना व जा अरि
ना बन के अब रह सके दुधारी
ओकरा पास बा कलम-बेलन दुधारी
रच शौर्य गाथा ना गा चाँचरी( वह गाना जो वसंत में गाया जाता है )
बहुत बन के रह चु क ल गठरी-कुररी(मादा-टिटहरी)
मेहनत के रंग दिखला बन चातुरी(चतुराई,धूर्तता)




7 comments:

  1. खूब कहिन
    सिखा दो न दीदी हमें भी

    ReplyDelete
  2. सुंदर कविता ...आंचलिक शब्द प्रभावी बना रहे है

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया.. सुंदर अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  5. कोई छूये ना , ओकर आँचल के किनारी
    ना त भोंक दी , तोरा छाती पे कटारी

    इसी की ज़रुरत है ..बहुत सुन्दर लगी कविता... आंचलिक रस ने इसे और भी प्यारा बना दिया :)

    ReplyDelete
  6. आंचलिक भाषा या बोली, इसकी मिठास ही अलग है ,उसका स्वाद इसमें आया .
    New post बिल पास हो गया
    New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र

    ReplyDelete

आपको कैसा लगा ... यह तो आप ही बताएगें .... !!
आपके आलोचना की बेहद जरुरत है.... ! निसंकोच लिखिए.... !!

प्रघटना

“इस माह का भी आख़री रविवार और हमारे इस बार के परदेश प्रवास के लिए भी आख़री रविवार, कवयित्री ने प्रस्ताव रखा है, उस दिन हमलोग एक आयोजन में चल...