facebook में थोडा थोडा लिखती हूँ …....
ब्लॉग डायरी में फिर जमा करती हूँ
किसी को पसंद आये या ना आये
क्या फर्क पड़ना चाहिए तो क्यूँ
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मिली ज़िंदगी कोरे कागज की तरह
कुछ लिख भी न सकूँ ..... जला भी न सकूँ
चाहत की कश्ती पर हूँ सवार
डूब भी न सकूँ ..... तैर भी न सकूँ
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कमजोर को ही दबाया जा सकता है ना
मजबूत से पंगा लिए तो
चंगा नहीं रह पाते ना .....
खुदगर्ज नकाब
चेहरे पर चढ़ा
हितैषी का नाटक
करने मे माहिर
ये दुनिया
मरने से पहले
रोज मरने पर
विवश करती
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ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
शिकवे सुबह दर्द में डूबी रात हुई
लहुलुहान को नोखरती कब तक है
इंतजारे जी हलकान हो ये बात हुई
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कुछ हाइकु भी हो साथ
तो बनती है कुछ बात
1
ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
शिकवे सुबह दर्द में डूबी रात हुई
लहुलुहान को नोखरती कब तक है
इंतजारे जी हलकान हो ये बात हुई
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कुछ हाइकु भी हो साथ
तो बनती है कुछ बात
1
द्विअर्थी सारे
शब्द वस्त्र उतारे
पर कतरे ।
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2
2
पहाडी धान्य
चलारू से बनता
काला सोना है।
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3
सफेद पन्ना
घाम खबरें पढे
पीलिया ग्रस्त ।
पन्ना(पत्र)
घाम{धूप} पीली करती
===========
4
फूलों के गुच्छे
सुंदर बच्ची पौधे
बालो मे गुथे ।
==========
5
बधिकशाला
अपने रह लेते
ईर्ष्या में जीते ।
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6
चेष्टा कपट
अक्स घाघ सुंदर
फँसते लोग ।
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3
सफेद पन्ना
घाम खबरें पढे
पीलिया ग्रस्त ।
पन्ना(पत्र)
घाम{धूप} पीली करती
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4
फूलों के गुच्छे
सुंदर बच्ची पौधे
बालो मे गुथे ।
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5
बधिकशाला
अपने रह लेते
ईर्ष्या में जीते ।
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6
चेष्टा कपट
अक्स घाघ सुंदर
फँसते लोग ।
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सुंदर प्रस्तुति आदरणीय , धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
ReplyDeleteशिकवे सुबह दर्द में डूबी रात हुई
लहुलुहान को नोखरती कब तक है
इंतजारे जी हलकान हो ये बात हुई.... वाह वाह क्या बात हुई.
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : सिनेमा,सांप और भ्रांतियां
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 29/03/2014 को "कोई तो" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1566 पर.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
Deleteआपकी आभारी हूँ
बहुत सुंदर शब्द संयोजन .
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रस्तुतीकरण !
ReplyDeleteजीवन का फलसफा भी पसंद आया और हाइकु भी !
ReplyDeleteलेटेस्ट पोस्ट कुछ मुक्तक !
kya bat hai bhiva jee dil ke saare dard udel diya aapne kaga ke pannon pe .....bahut sundar ,,,,,bahut acchha laga ....
ReplyDeleteदर्द भी जरूरी है खुशियों को देखने के लिये.
ReplyDeleteसंसार विरोधाभास ही है.
कभी इन्में से ही किरणें फूटेंगी.
ज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
ReplyDeleteशिकवे सुबह दर्द में डूबी रात हुई
लहुलुहान को नोखरती कब तक है
इंतजारे जी हलकान हो ये बात हुई....
वाह ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!
RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
लिखना ही तो बस अपना होता है
ReplyDeleteलिखिये जो मन में आये
इमर्जैंसी में भी लिखना जो
क्या छोड़ दिया जाता है :)
सुन्दर रचना
ReplyDeleteज़िंदगी से जब भी मुलाक़ात हुई
ReplyDeleteअपने जख्मों से ढेर सारी बात हुई ...