Wednesday 12 June 2019

अंत का सत्य



अवलम्बन
पुत्री-पत्नी का
पिता-पति
थोड़े रूप में स्वीकार
किये जा सकते हैं
जनक-पोषण कर्त्ता होते हैं

लेकिन
अवलम्बन माता का?
पुत्र बने कुछ नहीं जमता
वृद्ध होकर कहाँ जाएगी
 यह तन का साथ
छूटने के पहले
सोचना क्या
बुद्धिमान होना कहलाता

गर्भनाशक अमरबेल
एकशाकीय परजीवी
क्वाथ कराये गर्भपात
जर्द पड़े शजर क्यों नहीं
मोहभंग कर विरोध करता
दो ही रास्ते मिलते हैं
कुढ़ कर मूढ़ होकर जी लो
मुन्नी/मुन्ना बन मस्ती से
जीवन गुजार लो


8 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना ,सादर नमस्कार दी

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  2. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    Replies
    1. सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका

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  3. जीवन के प्रति चिन्तन को प्रेरक करता सृजन ।

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  4. गहरी कड़वाहट और जबरदस्त तंज विचारोत्तेजक रचना।
    अप्रतिम।

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  5. किसी भी माँ को बुढ़ापे में भी किसी सहारे की ज़रुरत नहीं पड़नी चाहिए. बरगद के पेड़ को भला कौन पेड़ छांह दे सकता है?
    उसे अपनी सामर्थ्यानुसार गाढ़े वक़्त के लिए अपना सहारा पहले से ही खोज कर, बना कर, रख लेना चाहिए.

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