"महाशय! समझ में नहीं आया किस कारण विगत कुछ माह से आपकी संस्था क्षरम से वांछित सहयोग राशि प्राप्त नहीं हो पा रही है...?" साक्षी फाउंडेशन के सचिव ने क्षरम के कोषाध्यक्ष से शिकायत भरे लहजे में पूछा।
"हाँ! सहयोग राशि रोक दी गई है। इस सम्बंध में आपके विरुद्ध एक पत्र प्राप्त हुआ है!" कोषाध्यक्ष ने इत्मीनान से कहा।
"वो क्यों ? किस सम्बंध में? सचिव ने चौंकते हुए पूछा।
"क्या शिकायत आई है जरा मैं भी जान लूँ!" पुनः सचिव की उत्तेजक आवाज गूँजी
"अकस्मात् जो मंडली बाढ़ राहत सामग्री लेकर गई थी उसके एक सदस्य ने आपको अपनी सहयोगी महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा और बिना आपको कुछ कहे वहाँ से भाग आया..! गलती भूल यह हुई कि वह उस दृश्य की फोटो नहीं ले सका...।"
"यह मेरा निजी मामला है... इससे किसी को क्या लेना-देना...?" सचिव ने ढिठई दिखाते हुए कहा।
"किसी का नाजायज रिश्ता निजी नहीं रह जाता है... चाक से गढ़ने वाले हाथ चरित्र हरण नहीं करते...! हमारी संस्था चरित्रहीन लोगों की संस्था को कोई सहयोग नहीं देती है!" कोषाध्यक्ष क्रोधित हो रहा था।
"मेरी चरित्रहीनता का प्रमाण?"सचिव बेशर्मी की हद पार कर रहा था।
"यह मेरा निजी मामला है... आपका यह कथन जो मेरे मोबाइल में रिकॉर्ड हो चुका है... आपके चरित्रहीन होने का पुख्ता प्रमाण है... अब आप जा सकते हैं।" कोषाध्यक्ष की आँखें और उंगली का इशारा खुले दरवाजे की ओर था।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -१०-२०१९ ) को " सृष्टि में अँधकार का अस्तित्त्व क्यों है?" ( चर्चा अंक - ३५०२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सस्नेहाशीष व असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
Deleteयह घटना हर संस्था की बदनामी है। लेकिन ऐसा भी होता है।
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