"अकील का फोन आया था वो बता रहा था कि आज कॉलोनी में अकील की अम्मी आने वाली हैं।" रवि ने कहा।
"सर! अकील सर की अम्मी अपने हाथ से काटा मुर्गा ही खाती हैं, वरना नहीं।" रसोइया ने कहा।
अकील और रवि विद्यार्थी जीवन से मित्र थे। कुछ महीनों पहले ही अकील के स्थान पर रवि स्थानांतरित होकर आया था। अकील उसी शहर का निवासी था। उसके परिवार के सदस्य अक्सर कॉलनी में घूमने आया करते थे।
"ठीक है उनके आने के बाद ही मध्याह्न भोजन बनेगा। उन्हें जैसे जो पसन्द हो वो बना लेना।" कार्यालय के लिए निकलते हुए रवि ने कहा।
"मेमसाहब! साहब को आपने कुछ कहा नहीं।" रसोइया ने रवि की पत्नी ज्योत्स्ना से कहा।
"आपके साहब को क्या कहना था महाराज?" ज्योत्स्ना ने पूछा।
"हमारा नवरात्र चल रहा है.. मेमसाहब!"
"हम उपवास तो कर नहीं रहे हैं,"
"मेमसाहब! नवरात्र करना अलग बात है और पर्व त्योहार में मास-मछली खाना अलग बात है।"
"आप चिन्तामुक्त रहें महाराज! अकील जी की अम्मी के पसन्द का ही भोजन बनेगा। पका मुर्गा कूद कर हमारे मुँह..,"
कुछ देर के बाद अकील की अम्मी ज्योत्स्ना से मिलने आ गयीं। चाय पानी के बाद रसोइया उन्हें मुर्गा काटने के लिए बुलाने आ गया।
"नवरात्र के समय हमारे परिवार में मुर्गा बनना बन्द हो गया है महाराज। वरना मैं इस काल में यहाँ क्यों आती?"
"पहले तो ऐसा नहीं था अम्मी!" रसोइया वर्षो से अकील के साथ भी रहा था।
"हाँ। पहले ऐसा नहीं था। पिछले साल नवरात्र के समय अकील की बड़ी बेटी हिना को बड़ी माता निकल गयी थीं तो..,"
समझने की बात है समय से
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