"ये रे लखिया तू किस मिट्टी की बनी है? तुझे ना तो इस श्मशान बने जगह पर आने में डर लगा और ना मृतक को बटोरने में!"
"मेरा डर उसी समय भाग गया साहब जब युद्ध छिड़ा..।"
"तू इनका करेगी क्या?"
"मुझे भी अपना और अपने जैसों का पेट भरना और तन ढंकना है। मेरे पुस्तक में लिखा है कि वैज्ञानिकों ने शोध में पाया है कि इन्सान और जानवरों के टिशू को भी हीरे में बदला जा सकता है।"
"तू इतना क्यों मेहनत कर रही है। तू मेरी बात मान ले तो मैं तुझे अपने घर ले जा सकता हूँ। तेरा पेट भी भरेगा और तन पर भी रेशम चढ़ जाएगा।"
"मेरे तन का रंग ग्रेफाइट है जो क्रुसिबल बनाने में सहायक होता है साहब।और आपका मन..."
मन सिलिका हो लिया है कमप्यूटर चिप्स बनते हैं सुपरफ़ास्ट
ReplyDeleteजवाब नहीं आपका !
Deleteसारा खेल मन का ही तो है, तन और मन दोनों साफ़ हो तो फिर रोना काहे का हो जग में
ReplyDeleteयथार्थ पर गहरा दृष्टिकोण ।
ReplyDeleteसराहनीय रचना ।
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteमार्मिक लघुकथा दी.... मन को बिंधती।
ReplyDelete"मेरे तन का रंग ग्रेफाइट है जो क्रुसिबल बनाने में सहायक होता है साहब।और आपका मन...निशब्द हूँ इन दो वाक्यों पर...
सादर
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 26 अप्रैल 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आपका
Deleteमन के जीते जीत है
ReplyDeleteमन के हारे हार
बहुत अर्थपूर्ण लघुकथा
सौ बातों की एक बात!
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन।
ReplyDeleteलाजवाब ! धारदार ! अभिनंदन ।
ReplyDeleteदिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना।
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ReplyDeleteभीतर तक चुभती हुई....
ReplyDeleteमार्मिक धारदार लघुकथा
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