Friday 8 April 2022

आक्षेप


"भादों के अमावस्या की रात से भी ज्यादा काली, गले में नरमुंडों की माला, हाथ में कटा हुआ सिर जिससे खून टपक रहा, पैरों के नीचे आदि मानव को दबाए खड़ी, इतनी भयानक स्त्री की सरंचना?" गीता-सार ने कहा।

"तेरे कृष्ण का विशालकाय शरीर और मुँख से झलकता भुवन। मनुष्य के शरीर को महज एक कपड़े का टुकड़ा बता रहा..।" कालरात्रि ने कहना शुरू किया, "काली सुंदर ही नहीं, सुंदरतम है। स्त्री के दो सत्य रूप है जन्मदात्री और मोक्षदायिनी भी। जानता है माँ को शहद बेहद पसंद है..," कालरात्रि ने कहा।

"जहाँ से जीवन आएगा, वहीं से मृत्यु भी आएगी। आत्मा स्थिर है। न शरीर मनु का है, न मनु शरीर के है। शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और उनमें ही...,"

"ठहरो-ठहरो..! बिना उनके मर्जी के पत्ता नहीं हिलता न...। तो उनसे कहना अविरल विश्व युद्ध से हम शक्तिहीन हो चुके हैं...।" अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश का समवेत स्वर गूँज उठा और पंचतत्व ने आँखों तथा कानों को बन्द कर लिया।

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