गूगल में लिंक्स ढूँढने के क्रम में (सन् 2012 में) हाइकु विधा का पता चला..। बहुत आसान 'खेल' लगा पाँच, सात, पाँच सत्रह वर्ण में अपनी बात कहना। कुछ महीनों में तीन फेसबुक ग्रुप से जुड़ गयी। जोड़ने का काम डॉ. सरस्वती माथुर जी द्वारा हुआ। एक समूह के एडमिन श्री पवन जैन जी (लखनऊ), एक समूह में अनेक एडमिन श्री महेंद्र वर्मा जी, श्री योगेंद्र वर्मा जी, Arun Singh Ruhela जी(भाई अरुण रुहेला जी हम निशाचरों से बहुत परेशान रहे) एक समूह के एडमिन डॉ जगदीश व्योम जी मिले। तभी पता चला हाइकु लिखना खेल नहीं है।
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हाइकु लेखन में जो मुख्य आधार का पता चला
–अनुभूति का विशेष क्षण हो
–उसपर चित्रकार द्वारा चित्र बनायी जा सके
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व्योम जी के फेसबुक ग्रुप में हमारी कोई रचना पास हो जाती तो हम खुश हो जाते। उसपर चर्चा चलती। यात्रा लम्बी चली उनका कारवाँ बढ़ता रहा। और आज लगभग पन्द्रह साल से चल रहे उनके अथक श्रम से तीन पंक्तियों में सत्रह वर्णों के साथ रची जाने वाली, विश्व की सबसे लघु रचना 'हाइकु' को लेकर संपादित की गई पुस्तक में ७२८ पृष्ठों वाले इस वृहतकाय 'हिंदी हाइकु कोश' में देश-विदेश के १०७५ हाइकुकारों के कुल ६३८६ हाइकु संकलित हैं।
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किसी काल में देश के गाँव-शहर के क्या हाल थे..
सवेरा हुआ
लोटे निकल पड़े
खेतों की ओर
–डॉ. जगदीश व्योम
पृष्ठ-613
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गोधूलि वेला
गजरा बेच रही
दिव्यांग बाला
–सविता बरई वीणा
पृष्ठ-181
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जीवन की सच्चाई समझाने वाले..
आखिरी पत्ता
हवा में लहराया
मौन विदाई
-डॉ. सरस्वती माथुर
पृष्ठ-63
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आँगन रीता
अकेला बूढ़ा जन
कैसे जी लेता
–डॉ. राजकुमारी पाठक
पृष्ठ-59
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बदलते ऋतु की पहचान बताने वाले
आँख मिचौली
कोहरा-धूप खेले
सिगड़ी जली
–निवेदिताश्री
पृष्ठ-57
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माघ की धूप
संदूक में जा छिपे
ऊनी कपड़े
–आरती पारीख
पृष्ठ-500
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बादल लाये
बारात द्वार पर
ढोल बजाते
–अंजुलिका चावला
पृष्ठ-444
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वाले हाइकु के संग अनेक मुद्दे समाहित हैं। बहुत कुछ, बहुत-बहुत-बहुत कुछ है...।
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हाइकु कोश से अध्येता-शोधार्थी को हाइकु लेखन समझना आसान होगा तो उन्हें मिलेगा अनेक हाइकु–संग्रह की सूची हाइकुकार/सम्पादक के नाम के संग तो
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हाइकु-संकलन, हाइकु–केन्द्रित समीक्षा एवं शोध-पुस्तकों की सूची तथा पत्र-पत्रिकाओं के नाम सम्पादक.. वर्ष-माह-अंक के साथ..
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यह पुस्तक हमें कल मिली है... लेख्य-मंजूषा पुस्तकालय में रखी जायेगी... अध्येताओं के लिए लाभकारी पुस्तक के लिए डॉ जगदीश व्योम जी को अशेष शुभकामनाओं और हार्दिक आभार के संग साधुवाद
सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
ReplyDeleteप्रिय दीदी,बहुत चाहने के बाद भी इस सुन्दर विधा के प्रति ना जुनून जगा,ना इसे सीखने के लिए पर्याप्त समय निकाल पाई ।पर बहुत भाती है ये गागरमें सागर विधा।बहुत अच्छा लिखा है आपने और हाइकु पुस्तक की थोड़े शब्दों में ही बढ़िया समीक्षा की है।प्रस्तुत सभी हाइकु शानदार हैं। पुस्तक में शामिल सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।हार्दिक आभार इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए 🙏❤
ReplyDeleteवाह विभा जी, हाइकू के विषय में उदाहरण सहित रोचक जानकारी.
ReplyDeleteसार्थक आलेख
ReplyDeleteशुभकामनाएं
हाइकू पढ़ने में सरल होते हैं और सत्रह वर्णों की मर्यादा में मन की अवस्था, प्रकृति, सामयिक घटना, भाव भावनाएँ व्यक्त कर देते हैं। हायकू लिखते तो बहुत लोग हैं पर हाइकू विधा के साथ न्याय कर पाना सब के बस का रोग नहीं। अच्छी बात है कि इस विधा का इतना बड़ा संकलन प्रकाशित हुआ।
ReplyDeleteसवेरा हुआ
ReplyDeleteलोटे निकल पड़े
खेतों की ओर
हायकु विश्वविद्यालय तक पहुँचकर जो भी सीखा डॉ. व्योम जी के इस हायकु को पढ़कर लगा अभी कुछ भी नहीं सीखा और बहुत कुछ सीखना बाकी रह गया है इस विधा में.....
इस विधा पर इतना बृहद संकलन !
वाह!!!
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं आप सभी को।