"शिउली नीम पालक चुकुन्दर से रंग तैयार किया गया और यह क्या तुम पहले से अपने चेहरे पर लगा रखा है?" श्यामा की सास ने पूछा।
"बहू! उलटे तावे के रंग सा जिसके चेहरे का रंग हो उसके चेहरे पर काला रंग ही शोभ सकता है न! रुधिरपान करने वाली ‘ढुण्ढा' राक्षसी सी लग रही है तुम्हारी बहू..," श्यामा की दादी सास ने कहा।
"दादी! श्यामा के चेहरे का रंग काल के संग नहीं बदलेगा और जब मुझे श्यामा के पति को श्यामा के रंग से कोई फर्क नहीं पड़ता तो अन्य किसी को कटाक्ष नहीं करना चाहिए।"श्याम ने श्यामा को लाल अबीर लगाते हुए कहा।
"देखिए माँ जी! मेरी बहू ‘ढुण्ढा' राक्षसी के भय से परित्राण दिलाने वाली ‘होलिके' (रक्षादेवि) लग रही है।"श्यामा की सास ने कहा।
"मेरे परिहास को...," दादी की बात पूरी होने के पहले सब ठहाका लगा रहे थे।
क्रांति ही है।
ReplyDeleteदृष्टि बदलते ही दृष्टिकोण बदल जाता है।सास और पति जिसका मान बढ़ाएँ उसका सम्मान कौन खंडित कर सकता है।ये गुणों के सम्मान की सदी है,दैहिक सौंदर्यने किसका भला किया?? गुणों नेमानवता को सींचा है।बहुत ही भावपूर्ण और शानदार प्रस्तुति प्रिय दीदी।⚘⚘❤❤🌹🌹🙏🙏
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