Saturday 5 March 2022

कुटिल बचन साधू सहै...

प्रिय अरुण

शुभाशीष

आशा है तुमलोग कुशल होंगे। तुम गाँव आये थे तो कह गए कि जो पैदावार होता है उससे आप कमरे सबका देखभाल भी करें और आपलोगों के रहने के लिए कमरा खोल जाता हूँ। जब कभी हमलोग गाँव आयेंगे तो हमें रहना भी अच्छा लगेगा।

पुराना घर होने के कारण कमरे की स्थिति बिगड़ रही थी। जिसको थोड़ा ठीक करवा दिया गया है। दो बार का फसल मुझे मिला। उसके बाद मुझे फसल मिलना बन्द हो गया। किसान से पूछा तो उसने कहा कि तुम्हारा छोटा भाई राजू खेत को मनी पर लगा दिया है जिसकी राशि उसे भेज दी जाती है। 

तुम्हारे कमरे को आगे मरम्मत करवाने में लगभग दो-ढ़ाई लाख का खर्च है।

कैसे क्या करना है पत्र पाते सूचित करना। बहू को सस्नेहाशीष बोल देना।

तुम्हारा चाचा

अखिलेश्वर


"क्या सोचा? गाँव के घर के मरम्मत करवाने के बारे में।" पत्र पढ़ने के बाद अरुण की पत्नी ने पूछा।

"पुरखों की निशानी बची रहे। मरम्मत तो करवाना ही होगा।"

"उससे हमलोगों को क्या लाभ होगा? आपको सेवा निवृत्त हुए पाँच वर्ष हो गए। गाँव जाना तो दूर की बात कभी चर्चा भी नहीं करते हैं।"

"सब कुछ स्वयं के लाभ के लिए ही नहीं किया जाता है। कुछ दायित्व समाज के लिए भी पूरा किया जाता है।"

"सहमत हूँ। इस बार की होली में गाँव चलते हैं और सब ठीक-ठाक करवाकर विद्यालय-पुस्तकालय शुरू करते हैं।"

"तुम अपने दिमागी-घोड़ों को तबेला में बाँध कर रखो। यह मेरे घर का मामला है। हम सब भाई जैसा चाहेंगे वैसा होगा।"

"आपके घर का मामला..?तो मैं इस घर में चालीस साल से क्या कर रही हूँ...!"

2 comments:

  1. एक ऐसा सवाल, जिसका उत्तर किसी स्त्री को आज तक नहीं मिला।

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