[03/07, 3:48 pm] १७९९९/२०२१ : म ग स म का १२ वाँ स्थापना दिवस समारोह,
दि ०-०३-०७-२०२२ ई ०.
सत्र - ०२,
समय - ०२-०४ बजे तक,
विषय - साहित्यिक आयोजन में आने वाली मुश्किलें और समाधान,
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सिंहासन खाली करो कि जनता आती है । रामधारी सिंह दिनकर सत्ता के भी करीब थे और जनता के भी। वे राष्ट्रकवि के साथ-साथ जनकवि भी थे।
कभी किसी समयोचित अवसर पर दिनकर ने कहा था :-
*'जब-जब सत्ता लड़खड़ाती है तो सदैव साहित्य ही उसे संभालती है'*
सत्ता को संभाल लेने वाली साहित्यिक-आयोजन के लिए अनुदान हेतु सत्ता की ओर ही टकटकी लगाना और हाथ फैलाना पड़े तो गाँधी जी को मेज के नीचे से हस्तांतरित भी करना पड़ता है और आयोजन में किसी मंत्री को अध्यक्षता देनी पड़ती है। मुख्य अतिथि में बुलाना पड़ता है। अब मंत्री जी को जनता हित को छोड़ बाकी सभी कामों की व्यस्तता होती है। एक से डेढ़ घण्टे विलम्बकर और अपने लावलश्कर के संग पधारेंगे। आवभगत करवायेंगे। बात-बात में अपनी व्यस्तता जतायेंगे और मात्र दस से पंद्रह मिनट या ज्यादा से ज्यादा आधा घण्टा ठहर गायब हो जाएंगे।
जो वरिष्ठ साहित्यकार समय या समय के पहले से पधार कर ठगे से स्तब्ध रह जाते हैं । उनका हुआ यह अपमान क्यों सहन किया जाए।
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म ग स म से उदाहरण में सीखा जा सकता यही नहीं होता।
संस्था ने विभिन्न शहरों के मोती के नाम से बहुत सारे प्रकाशन किया। लगभग तीन लाख रुपय की पुस्तकें प्रकाशित की गई ।
उनके सभापति, कुछ स्थाई सदस्य, कुछ पदाधिकारी, कुछ गुमनाम साथियों की वजह से यह संस्था चल रही है।
लगभग 6 साल से लेख्य-मंजूषा पंजीकृत संस्था की संस्थापक अध्यक्ष हूँ। सदस्यों के सहयोग से प्रत्येक महीने गोष्ठी और त्रैमासिक पत्रिका , वार्षिक पुस्तक, त्रैमासिक आयोजन वार्षिकोत्सव आयोजन होता जा रहा है।
अर्थ के आधार पर ही आयोजन की रूपरेखा बन जाती है और सफलता और असफलता की निर्भरता भी तय ।
स्थल चयन, संचालन - संयोजक आयोजक के कौशल पर निर्भर करता है तो उनका चयन संस्था के अध्यक्ष के अनुभव को परखने का मौका।
साहित्य प्रेमी तो अपने घर में भी कुशलतापूर्वक साहित्यिक आयोजन कर रहे हैं। घर में शादी का सालगिरह हो, बच्चों का , पति/पत्नी का जन्मदिन हो।
आयोजन में अर्थ का व्यय कंजूसी से नहीं बल्कि मितव्ययिता से कैसे हो इसका पूरा ख्याल रखना चाहिए।
यह ना हो कि दिखावे में ज्यादा राशि उड़ जाए। साहित्यिक कार्यक्रम जलसा बन जाये। अतिथियों को आने-जाने का किराया देने में, होटल में ठहराने में, नगद राशि देने में भारी रकम खर्च हो जाये।
साहित्य व्यापारी होना है या साहित्य प्रेमी/सेवक होना है, निर्णय करने का वक्त मुकर्रर है...
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१७९९९/२०२१
बिना नेता जी के कैसे चमकेगा आयोजन :) ।
ReplyDeleteफ़िर भी सराहनीय।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 05 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आपका
Deleteचिंतन परक लेख ।
ReplyDeleteसचमुच विचारणीय तथ्य।
साफ साफ , खरी खरी बात । साहित्यिक आयोजन भी आज व्यापारिक हो गए हैं । चिंता होना ज़रूरी है ।
ReplyDeleteविचारणीय लेख
ReplyDeleteसोलह आना सच ...। आजकल हर आयोजन व्यापारिक हो गया है ।
ReplyDeleteविचारणीय लेख
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