अनेक ऋतुओं के गुजर जाने के बाद वरुणा, अस्सी और गंगा की वर्चुअल गोष्ठी चल रही थी। वरुणा जहाँ अपने घाट के अनुभव साझा कर रही थी तो वहीं अस्सी, अपने घाट के।
"आज विपक्ष के एक प्रसिद्ध नेता इस नश्वर संसार से मुक्त हो गए, गाँव में रह रही पत्नी को आस-पास वालों ने शायद खबर भी नहीं दी होगी। घाट पर लिव-इन रिलेशन वाली आयी थी।"
"वो लिव-इन रिलेशनशिप वाली पहले से विधवा थी न? इस घाट पर लिव-इन रिलेशनशिप वाले विधुर मुक्त हो गए। विधुर की लिव-इन रिलेशनशिप वाली अपने पति को बिना तलाक दिए तथा अपने दो बच्चों तथा उनके दो बच्चों के संग रहती थी।"
"आजकल के बच्चे ज्यादा संवेदनशील हो रहे हैं...," गंगा की कसकती चुप्पी टूटी।
"उन्हें भी तो... शादीशुदा होने के बावजूद लिव-इन में रहना क्या गुनाह नहीं है..!"
"पहले लिव-इन रिलेशनशिप वाली को ही #$#$#... कहा जाता था न...! ...उच्च कुलीन वर्ग आधुनिकता में अपने सुविधानुसार मुग्ध शब्दों की चाशनी में नए रिश्तों की परिभाषा का सृजन करती रहती है।"
लाईव लिव से लिव इन तक मुर्दों से लाशों तक । जीवितो से मृतों तक । बहुत कुछ सीखना है अभी ।
ReplyDelete🙏 हमारी पीढ़ी के लिए स्तब्धता है
Deleteहमारे समाज के लिए अभी दिल्ली बहुत दूर है , बस हमसे अच्छा कोई नहीं बिना सीखने की चाह लिए !
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