"आज भी कुछ घरों के मंदिर में मिलता प्रवेश नहीं है, क्या पूर्वजों के बनाए नियम में दोष नहीं है!"
"आराम का संदेश, सभी नियमों में अहित समावेश नहीं है। ये जो हमलोगों को मिली नियति से शक्ति है, क्यों तुम और तुम्हारी सखी झिझकती है!"
"पैड प्रयोग करने की जागरूकता बढ़ी है। लेकिन कूड़ा निपटाने की समस्या ज्यादा सर चढ़ी है।"
"रुढ़ियों को तोड़ों! स्वास्थ्य को बचाना है, पढ़ो-लिखो आगे बढ़ते जाना है।"
"हमारे घरों की सहायिकाओं को स्काउट गाइड में प्रवेश दिलवाना है।"
"अवश्य! उत्तम प्रशिक्षण। ना इसमें ना कोई भेदभाव है ना जातिवाद होता है। क्या समाज को देना है, क्या जीवन से पाना है, तुम सभी का क्या लक्ष्य है?"
"पूछने वाला कोई गाँवों का हाल नहीं है। वहाँ वृद्धाश्रम का चाल नहीं है। मल पर पड़े तन्हा वृद्धों की सेवा करना, हमारा ध्येय है।"
"जब बचाने की बात हो तो वृक्ष छोड़ दिए जाने चाहिए, बीज को कभी भी नहीं छोड़े जाने चाहिए। क्योंकि बीजों से फिर नए वृक्ष हो ही जाते हैं।"
वाकई में अब शर्म कहां है धर्म सड़क पर जो दौड़ रहा है _/\_
ReplyDeleteजहाँ जरूरत हैं बदलाव की वहाँ बोलना भी जरूरी है।
ReplyDeleteधर्म की सही परिभाषा कर्म को.अंधेरे से उजाले की ओर ले जाना है न कि धर्म के नाम पर ढ़ोग और आडंबर को ढोने की।
सार्थक संदेश दी।
सस्नेह प्रणाम
सादर।
------
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDelete